पृष्ठ:शशांक.djvu/३५०

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(३३१) यह देखते चेष्टा करने लगे पर खौलते तेल, गले सीसे, और पत्थरों की वर्षा से अधिक दूर न चढ़ सके। सैकड़ों सैनिक घायल होकर नीचे खाई में जा रहे। यह देखकर भी पीछे की सेना विचलित न हुई । एक बार, दो बार, तीन बार सीढ़ियों पर चढ़ती हुई मागध सेना नीचे गिरी। खाई मुर्दो से पट गई। इतना होने पर भी चौथी बार मागध सेना ने आक्रमण किया। थानेश्वर के सेनानायक और भी चकित हुए। चौथी बार भी सैकड़ों सैनिक घायल हो होकर गिरने लगे, पर सेना बराबर चढ़ती गई। देखते देखते परकोटे के ऊपर युद्ध होने लगा। थानेश्वर की सेना हटने लगी। सहसा यह आपत्ति देख थानेश्वर के सेनानायक सेना के आगे होकर युद्ध करने लगे। मागध सेना पीछे हटने लगी। ही चमचमाता हुआ वर्म धारण किए एक लंबे डील का पुरुष हाथ में गरुड़ध्वज लिए शत्रुसेना के बीच जा कूदा और कड़ककर बोला "आज सुमुद्रगुप्त के दुर्ग में समुद्रगुप्त के वंशधर प्रवेश करेंगे, कौन लौटता है ?" मागध सेना लौट पड़ी। बिजली के समान गरुड़ध्वज आगे दौड़ता दिखाई पड़ा । प्रथम प्राकार पर अधिकार हो गया । देखते-देखते मागध सेना ने दूसरे प्राकार पर धावा किया । सहस्रों सैनिक घायल होकर गिरे, पर सेना बार बार चढ़ने का उद्योग करती रही। सैनिकों का शिथिल पड़ते देख वर्मधारी पुरुष गरुड़ध्वज हाथ में लिए चट सीढ़ी पर लपकता हुआ परकोटे के ऊपर जा खड़ा हुआ। तीसरे पहर की सूर्यकिरणों से चमचमाती हुई वावृत मूर्चि और सुवर्ण-निर्मित गरुड़ध्वज को ऊ पर देख मागध सेना जयध्वनि करने लगी। भय से थानेश्वर की सेना थोड़ा पीछे हटी। सहस्रों सैनिक प्राकार के ऊपर पहुँच गए। दूसरे प्राकार पर भी अधिकार हो गया।