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पृष्ठ:शशांक.djvu/३५८

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( ३३९ ) "देखो, अनंत ! जब मैं मरने लगूं तब मरते समय। "हृदय पर उसका नाम लिख देंगे।" "ठट्ठा न करो, उस समय नरसिंह) को बुला देना।" "उन्हें कहाँ पाऊँगा?" "अनंत ! वे कहीं दूर नहीं हैं। मेरे सामने नहीं होना चाहते इसी से कहीं इधर उधर छिपे हैं।" "आप निश्चय समझें कि आपके पीछे नरसिंह को बुलाने के लिए यज्ञवर्मा का पुत्र बचा न रहेगा। दूसरे दिन सूर्योदय के पहले भागीरथी के तट पर शशांक, अनंत और माधववर्मा और दूसरे पक्ष में राज्यवर्द्धन, भंडी और ईश्वरगुप्त इकट्ठे हुए। केवल हाथ में तलवार लेकर शशांक और राज्यवद्धन द्वंद्वयुद्ध में प्रवृत्त हुए। शशांक तलवार से केवल अपना बचाव कर रहे थे। उनकी तलवार एक बार भी राज्यवर्द्धन की तलवार पर न पड़ी। देखते देखते शशांक को कई जगह चोट आई, उनका श्वेत वस्त्र रक्त से रँग गया। फिर भी उन्होंने राज्ववर्द्धन के शरीर पर वार न किया ।, सहसा उनकी तलवार राज्यवर्द्धन की तलवार को हटा कर उनके गले पर जा पड़ी। झटके के कारण शशांक गिर पड़े। उनके साथ ही राज्यवर्द्धन का धड़ भी धूल पर लोट गया । राज्यवर्द्धन की मृत्यु सुन कर थानेश्वर की सारी सेना शिविर छोड़ कर भाग खड़ी हुई। भंडी संवाद लेकर थानेश्वर गए । शशांक आगे न बढ़कर कान्यकुब्ज लौट आए।