पृष्ठ:शशांक.djvu/३६२

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(३४३ ) अधिक दिन नहीं रह सकता। मैं अब चला। लतिका आपकी शरण में है । यदि हो सके तो इसका विवाह करके इसे रोहिताश्वगढ़ में बिठा दीजिएगा, और-"। वृद्ध ने तकिये के नीचे से एक जड़ाऊ कंगन निकाल कर कहा, "जब इसका विवाह हो तब यह कंगन इसे देना । यह कंगन इसकी दादी का उपहार है । कई पीढ़ियों से यह रोहिताश्व- गढ़ की स्वामिनी के हाथ में रहता चला आया है। सुना जाता है कि जब महाराज चंद्रगुप्त ने मथुरा से शकराज को भगाया था तब रोहि- ताश्व के प्रथम गढ़पति ने शकराज के हाथ से यह कंगन छीना था” । वृद्ध हृदय के आवेग से आगे कुछ न कह सके और लेट गए। थोड़ी देर में गरम दूध पीकर वृद्ध महानायक फिर कहने लगे “पुत्र ! अब मैं चारपाई से न उलूंगा । लतिका है, इसे देखना । यदि इसके वंश का लोप हो जाय तो रोहिताश्वगढ़ का अधिकार वीरेंद्रसिंह को दे देना । इस गढ़ की रझा करनेवाला इस समय और कोई नहीं दिखाई देता। मैं तो आज कल में चला, तुम सावधान रहना। तुम्हें मैं निष्कंटक करके न जा सका, यही बड़ा भारी दुःख रह गया । बाहरी शत्रु का तो तुम्हें कोई भय नहीं है। यदि घरके भीतर या देश के भीतर कोई झगड़ा न हो तो बाहरी शत्रु तुम्हारा, कुछ भी नहीं कर सकता। हस समय आर्यावर्त में एक हर्षवर्द्धन ही तुम्हारे शत्रु है । पर कामरूप के राजा को छोड़ और कोई तुम्हारे विरुद्ध, उनका पक्ष नहीं ग्रहण करेगा। राज्यवर्द्धन तो मर गए, पर प्रभाकरवर्द्धन के दूसरे पुत्र चुप- चाप न रहेंगे। हर्षबर्द्धन बदला लेने के लिए चढ़ाई करेंगे। उस समय तुम गौड़ और बंग की रक्षा का प्रबंध करना। यदि कभी किसी प्रकार की आपत्ति में पड़ना तो यह समझ लेना कि आर्यावर्त में कोई सहा यता करने वाला नहीं है । उस समय दक्षिणापथ में जगद्विजयी चालुक्य राज मंगलेश के पास दूत भेजकर सहायता माँगना" । बोलते बोलते वृद्ध यशोधपलदेव को कुछ थकावट आ गई। वे