पृष्ठ:शशांक.djvu/३६३

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(३४४ ) आँख मूंदकर चुपचाप पड़े रहे । जब उन्होंने आँखें खोली तब उनकी दृष्टि कुमार के पीछे खड़े उस नए युवक पर पड़ी। उन्होंने सम्राट के मुँह की ओर देखा । शशांक समझ गए कि वृद्ध महानायक उस युवक का परिचय चाहते हैं । शशांक ने पूछा "आर्य ! समरभीति का आपको कुछ स्मरण है ?" वृद्ध महानायक चकित होकर बोले "समरभीति तो मेरे बड़े भारी सुहृद थे । उनके सहसा देश छोड़कर कहीं चले जाने से मेरा दहिना हाथ टूट गया । उसी दिन से मैं और हारकर बैठ गया। शशांक बोले "आर्य ! उन्हीं के पुत्र सैन्यभीति. आपके सामने खड़े हैं" । वृद्ध महानायक फिर उठ बैठे । युवक को अच्छी तरह देख वे बोले "हाँ ! आकृति तो उन्हीं की सी है । भैया ! पास आओ”। युवक ने वृद्ध' के चरणों पर मस्तक रख दिया। महानायक आशीर्वाद देकर बोले "क्या नाम बताया ? सैन्यभीति । ठीक है, समरभीति के पुत्र सैन्यभीति" । वृद्ध युवक की पीठ पर हाथ फेरते फेरते बोले “पुत्र ये तुम्हें कहाँ मिले ?" "कान्यकुब्ज में जब मैं राज्यवर्द्धन के आक्रमण की प्रतीक्षा कर रहा था उसी समय ये मेरे पास आए । प्रतिष्ठानपुर के युद्ध में भी वाराणसी भुक्ति की सेना के साथ ये मिलकर लड़ते रहे, पर किसी को इनका परिचय न था। कान्यकुब्ज में जाकर इन्होंने अपने को प्रकट साम्राज्य की दुरवस्था के समय इनके पिता समरभीति चालुक्यराज मंगलेश के यहाँ दक्षिण चले गए थे। यशोधवल-सैन्यभीति ! तुम्हारे पिता अभी हैं ? सैन्य०-आर्य ! उन्हें मरे आज आठ वर्ष हुए। मेरी अवस्था पंद्रह वर्ष की थी। मरते समय जो कुछ उन्होंने कहा वह अब तक मेरे कानों में गूंज रहा है। पुत्र! गुप्तवंश को न .. भूलना । मैं अपने स्वामी महासेनगुप्त को दुरवस्था में छोड़ चला आया। किया। • उस समय