पृष्ठ:शशांक.djvu/३७८

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( ३५६) कुब्ज की ओर यात्रा करें। पुराने नौवलाध्यक्ष रामगुप्त और महा- धर्माधिकार नारायणशर्मा पाटलिपुत्र में रहकर मगध की रक्षा करें । यात्रा करने के पूर्व एक दिन सम्राट चित्रादेवी की फुलवारी में बैठे कान्यकुब्ज और प्रतिष्ठानदुर्ग से आए हुए दूतों के मुँह से युद्ध का वृत्तांत सुन रहे थे। लंबा भाला लिए अनंतवा उनके पीछे खड़े थे । कान्यकुब्ज का दूत दुर्ग के भीतर घिरे हुए वसुमित्र की दुर्दशा का ब्योरा सुना रहा था । दूत कह रहा था "महाराजाधिराज ! थानेश्वर की असंख्य सेना आकर नगर को घेरे हुए है। महानायक वसुमित्र सेना सहित दुर्ग के भातर घिरे हुए हैं। दुर्ग में यद्यपि खाने पीने की सामग्री कम नहीं है पर यदि साम्राज्य की सेना चटपट 'महानायक की सहायता के लिए न पहुँचेगी तो दुर्गरक्षा किसी प्रकार नहीं हो सकती। कान्य- कुब्जवाले बड़े विश्वासघाती हैं। वे धन के लोभ से चुपचाप दुर्ग का फाटक खोल दें तो आश्चर्य नहीं। अब तक तो खुल्लमखुल्ला उन्होंने कोई विरुद्ध आचरण नहीं किया है, पर विद्रोह होने पर नगर की रक्षा असंभव हो जायगी। नित्य थानेश्वर से नई नई सेना आकर दुर्ग पर धावा बोलती है। महानायक की सेना तो छीजती जा रही है पर शत्रु की सेना घटती नहीं दिखाई देती" । शशांक-विद्याधरनंदी कहाँ हैं ? दूत- वे भी प्रतिष्ठानदुर्ग में घिरे हुए हैं । शशांक-हरिगुप्त कहाँ तक पहुँचे हैं ? अनंत-प्रभो ! उनकी अश्वारोही सेना चरणाद्रि के आगे निकल शशांक-अनंत ! चलो हम लोग भी कल यात्रा कर दें। माधव और वीरेंद्र यदि भास्करवा को पराजित न कर सकेंगे तो भी उन्हें