चौथा परिच्छेद नूतन और पुरातन सबेरे से ही परिचारक लोग पुराना सभामंडप साफ करने में लगे हैं। सभामंडप काले पत्थरों का बना हुआ और चौकोर था। उसकी छत एक सौ आठ खंभों पर थी । फर्श भी काले चौकोर चिकने पत्थरों की थी। सभा-प्रांगण में सब के भीतर, चारों ओर गया हुआ, हरे पत्थरों का चबूतरा या अलिंद जो सुंदर पतले पतले खंभों पर पटा था। अलिंद पर सोने चाँदी का बहुत सुंदर काम था । छत पर पत्थर की मनोहर मूर्तियाँ थीं, स्थान स्थान पर रामायण और महाभारत के चित्र बने थे । अलिंद के पीछे सभामंडप के खंभे पड़ते थे। सभामंडप के किनारे चारों ओर पत्थर का बना हुआ चौड़ा घेरा था । पाटलिपुत्र के बड़े बूढ़े कहते थे कि पुराने सम्राटों के समय में इस घेरे के भीतर दस सहस्र अश्वारोही सुसजित और श्रेणीबद्ध होकर खड़े होते थे । सभा-मंडप में हाथी-दाँत की बनी हुई कम से कम एक सहस्र सुंदर चौकियाँ बैठने के लिये रखी थीं जो बहुत दिनों तक यत्न और देखभाल न होने के कारण मैली हो रही थीं। इन पर राजकर्मचारी और नगर के प्रतिष्ठित जन बैठते थे। यहाँ पर यह कह देना आवश्यक है कि मुसलमानी दरबारों के समान खड़े रहने की प्रथा प्राचीन हिंदू सम्राटों की सभा में न थी। राजा के आने पर सब लोग अपने आसनों पर से उठ खड़े होते थे और फिर राजाज्ञा से बैठ जाते थे। अलिंद में चाँदी की गद्दीदार चौकियों की दो श्रेणियाँ
पृष्ठ:शशांक.djvu/३८
दिखावट