पृष्ठ:शशांक.djvu/३९३

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सोलहवाँ परिच्छेद कर्णसुवर्ण अधिकार एक दिन रात के समय कर्णसुवर्ण के नए प्रासाद के अलिंद में माधववर्मा और रविगुप्त भोजन के उपरांत विश्राम कर रहे हैं । इतने में एक द्वारपाल ने आकर संवाद दिया कि कोशल से कुछ सैनिक आए हैं जो इसी समय महानायक माधववर्मा से मिलना चाहते हैं । माधव- वर्मा ने विरक्त होकर कहा “बे क्या कल सबेरे तक ठहर नहीं सकते ?" द्वारपाल ने कहा "हम लोगों ने उन्हें बहुत समझाया पर वे किसी प्रकार नहीं मानते, कहते हैं कि अत्यंत प्रयोजनीय संवाद है" | "उन्हें यहाँ ले आओ” कहकर माधववा पलंग पर ही उठकर बैठ गए। द्वार- पाल तुरंत एक प्रौढ़ सैनिक को लिए हुए आया । सैनिक माधववर्मा को अभिवादन करके बोला "प्रभो! भयंकर संवाद है": माधववर्मा सैनिक को देख घबराकर उठ खड़े हुए और पूछने लगे "नवीन ! कहो क्या संवाद है" | बताने की आवश्यकता नहीं सैनिक और कोई नहीं वंगदेश का माँझी नवीनदास है। नवीन ने कहा "प्रभो ! हमारी सारी सेना अभी ताम्रलिप्ति तक भी नहीं पहुँची है । मैं अपनी नौ सेना लेकर अभी चला आ रहा हूँ। मार्ग में मैंने देखा कि गंगा के उस पार दूर तक न जाने किसके शिविर पड़े हैं । पश्चिम तट के सब गाँव उजाड़ पड़े हैं और घाट पर एक नाव भी नहीं है । आपको क्या अब तक इसका कुछ भी संवाद नहीं मिला ?" "कुछ भी नहीं"।