( २६ ) देखते देखते एक शांतिरक्षक वहाँ आ पहुँचा और पूछने लगा "क्या हुआ ?" एक साथ दस आदमी उत्तर देने लगे “मद्य पीकर ये कई विदेशी इस बालिका को मार रहे हैं, इसका भाई आकर इसे छुड़ा रहा है ।" छुड़ानेवाले का डीलडौल देखकर शांतिरक्षक हँस पड़ा। पूछने पर सैनिक ने उत्तर दिया “बालिका मेरी बंदी है मैंने उसे मार्ग में पकड़ा । यह बालक कौन है, मैं नहीं जानता । मैं किसीको मारता पीटता नहीं हूँ।" इतने में दूकान पर सौदा लेनेवाला वह आदमी लड़के को ढूँढ़ता हूँढ़ता पेड़ के पास भीड़ इकट्ठी देख वहाँ आ पहुँचा। चारों ओर घूम घूम कर देखने पर भी जब उसे किसी बात का पता न चला तब वह धीरे-धीरे भीड़ हटा कर घुसा । घुसते ही पहले तो उसने देखा कि उसका मोल लिया हुआ सारा सामान एक किनारे पड़ा है और बालक उस बालिका की गोद में बैठा है । उसने लड़के से पूछा “अरे ! तू यहाँ इस तरह आ बैठा है ? ' लड़का उसे देख और भी रोने लगा और बोला "मैं बहिन को छोड़कर कहीं न जाऊँगा।" वह चकपका उठा। चारों ओर जो लोग खड़े थे वे उससे अनेक प्रकार की बातें पूछने लगे। उसने बताया कि “मैं भी थानेश्वर की सेना में ही हूँ, रात भर फासींद में प्रतीहार के रूप में रक्षा पर नियुक्त था, सबेरे छुट्टी पाकर रसोई की सामग्री लेने नगर की ओर गया था । बोझ अधिक हो जाने पर बनिये ने अपने लड़के को साथ कर दिया था। इस लड़की को मैंने कभी नहीं देखा था।" जिन लोगों ने मार्ग में लड़की को पकड़ा था वे एक साथ बोल उठे कि लड़की. पाटलिपुत्र की नहीं है। देखते-देखते शिविर के शांतिरक्षक वहाँ आ पहुँचे, पर भीड़ बराबर बढ़ती ही जाती थी । उन्होंने बहुत चेष्टा की पर हुल्लड़ शांत न हुआ । नगरवासियों की संख्या क्रमशः बढ़ने लगी। देखते-देखते दोनों पक्षों में झगड़ा बढ़ चला । गाली-गलौज से होते-होते मारपीट की नौबत
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