पृष्ठ:शशांक.djvu/५

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भूमिका यह उपन्यास श्रीयुत राखालदास बंद्योपाध्याय महोदय के बँगला उपन्यास का हिंदी भाषांतर है। राखाल बाबू का संबंध पुरातत्व- विभाग से है । भारत के प्राचीन इतिहास की पूरी जानकारी के साथ साथ दीर्घ कालपटल को भेद अतीत के क्षेत्र में क्रीड़ा करनेवाली कल्पना भी आपको प्राप्त है । अपना स्वरूप भूले हुए हमें बहुत दिन हो गए । अपनी प्रतिभा द्वारा हमारे सामने हिंदुओं के पूर्व जीवन के माधुर्य का चित्र रखकर आपने बड़ा भारी काम किया। सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि आपने यह स्पष्ट कर दिया कि प्राचीन काल की घटनाओं को लेकर उनपर नाटक या उपन्यास लिखने के अधिकारी कौन हैं। प्राचीन काल में कैसे कैसे नाम होते थे, कैसा वेश होता था, पद के अनुसार कैसे संबोधन होते थे, राजकर्मचारियों की क्या क्या संज्ञाएँ होती थीं, राजसभाओं में किस प्रकार की शिष्टता बरती जाती थी इन सब बातों का ध्यान रखकर इस उपन्यास की रचना हुई है। यही इसका महत्व है। मुसलमानी या फ़ारसी तमोज़ के कायल इसमें यह देख सकते हैं कि हमारी भी अलग शिष्टता थी, अलग सभ्यता थी, पर वह विदेशी प्रभाव से लुप्त हो गई। वे राजसभाएँ न रह गई। हिंदू राजा भी मुसलमानी दरबारों की नक़ल करने लगे ; प्रणाम के स्थानमा पलाम होने लगा। हमारा पुराना शिष्टाचार अंतर्हित हो गया और हम समझने लगे कि हम में कभी शिष्टाचार था ही नहीं । इस उपन्यास में जो चित्र दिखाया गया है वह गुप्त साम्राज्य की घटती के दिनों का है जब श्रीकंठ ( थानेश्वर ) के पुजभूति वंश का प्रभाव बढ़ रहा था । प्राचीन भारत के इतिहास में गुप्तवंश उन