पृष्ठ:शशांक.djvu/६

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प्रतापी राजवंशी में है जिनके एकछत्र राज्य के अंतर्गत किसी समय सारा देश था । कामरूप से लेकर गांधार और वाह्लाक तक और हिमालय से लेकर मालेवा, सौराष्ट्र, कलिंग और दक्षिणकोशल तक पराक्रांत गुप्त सम्राटों की विजय पताका फहराती था। इस क्षत्रिय वंश के मूलपुरुष का नाम गुप्त था । इन्हीं गुप्त के पुत्र घटोत्कच हुए जिनके प्रतापी पुत्र प्रथम चंद्रगुप्त लिच्छवी राजवंश की कन्या कुमारदेवी से विवाह कर सन् ३२१ ई० में मगध के सिंहासन पर बैठे और गुप्त वंश के प्रथम सम्राट् हुए। उनके पुत्र परम विजयी समुद्रगुप्त ( सन् ३५० ई० ) ने अपने साम्राज्य का विस्तार समुद्र से लेकर समुद्र तक बढ़ाया। प्रतिष्ठान ( झूँसी) इनके प्रधान गढ़ों में से था जहाँ अब तक इनके कीर्त्तिचिह्न पाये जाते हैं । समुद्रकूप इन्हीं के नाम पर है । इलाहाबाद के किले के भीतर अशोक का जो स्तंभ है उसे मैं समझता हूँ कि इन्हींने कौशांबी से लाकर अपने प्रतिष्ठानपुर के दुर्ग में खड़ा किया था। पीछे मोगलों के समय में झूँसा से उठकर वह इलाहाबाद के किले में आया । इसी स्तंभ पर हरिषेण कृत समुद्रगुप्त की प्रशस्ति अत्यंत सुंदर श्लोकों में अंकित है। समुद्रगुप्त के पुत्र द्वितीय चंद्रगुप्त (विक्रमादित्य ) हुए ( सन् ४०१-४१३ ई०) जिन्हें अनेक इतिहासज्ञ कथाओं में प्रसिद्ध विक्रमादित्य मानते हैं। चद्रगुप्त विक्रमादित्य के पुत्र प्रथम कुमारगुप्त ने ४१५ से ४५५ ई० तक राज्य किया। कुमारगुप्त के पुत्र स्कंदगुप्त के समय में हूणों का आक्रमण हुआ और गुप्त साम्राज्य अस्तव्यस्त हुआ। स्कंदगुप्त ने ४५५ से ४६७ ई० तक राज्य किया। जान पड़ता है कि हूणों के साथ युद्ध करने में ही इनके जीवन का अन्त हुआ। इनकी उपाधि भी विक्रमादित्य थी।

स्कंदगुप्त के पीछे, जैसी कि कुछ लोगों की धारणाहै, गुप्तसाम्राज्य एकबारगी नष्ट नहीं हो गया। ईसा की छठी और सातवीं शताब्दी तक गुप्त साम्राज्य के बने रहने के अनेक प्रमाण पाए जाते हैं। गुप्त