पृष्ठ:शशांक.djvu/६५

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(४५) पूरा सिंहासन के पास खड़ा रहता था ? यज्ञवर्मा का स्मरण मुझे है, स्मरण है। उनके हाथ में यदि खड्ग न होता तो ब्रह्मपुत्र के किनारे सुस्थितवर्मा के हाथ से मैं मारा गया होता । उन्हीं यज्ञवर्मा की कन्या आज.. कटे कदली के समान सम्राट् मूञ्छित होकर धड़ाम से भूमि पर गिर पड़े, यदि प्रभाकर झट से थाम न लेते तो उन्हें बहुत चोट आती । महाप्रतीहार के बुलाने पर प्रासाद के परिचारक आकर उपचार में लग गए। थोड़ी देर में उन्हें सुध हुई और उन्होंने किसी प्रकार मुँह पर थोड़ी हँसी लाकर अपनी बहिन से कहा "देवि ! मैं आपके विचार में अब बाधा न दूंगा । बुढ़ापे ने अब मुझे भी आ घेरा है, बाल सफेद हो गये हैं, देह में अब शक्ति नहीं रह गई है, साथ ही मानसिक बल भी जाता रहा है। मेरा अपराध क्षमा करना।" महा.- -भैया ! आपका जी अच्छा नहीं है, घर के भीतर जाकर थोड़ा विश्राम कीजिए। मैं अकेले विचार कर लूंगी। सम्राट-देवि ! अनेक युद्धों में साम्राज्य के लिए मौखरि लोगों ने अपना रक्त बहाया है। यज्ञवम्मा ने अनेक युद्धों में मेरी प्राणरक्षा की है। कई रातें हम दोनों ने अस्त्रों की शय्या पर एक साथ काटी हैं। महाप्रतापी मौखरि महानायक की कन्या किस प्रकार एक सामान्य सैनिक के हाथ में पड़ो, मैं सुनना चाहता हूँ।" महादेवी ने कोई उत्तर न देकर अपने भाई के मुँह की ओर देखा और महाप्रतीहार से कहा “पृथूदक की पदातिक सेना के नायक रत्न- सेन को बुला लाओ और उसके साथ बालिका के भाई को भी लेते आना। रत्नसेन और बालक को लेकर महाप्रतीहार के लौटने पर महादेवी ने रत्नसेन से पूछा “तुम्हारा नाम रत्नसेन है ?"