( ६३ ) अदृष्ट साथ साथ उस जाल को हटाने का बहुत यत्न किया था, एक दिन तुम भी करोगे। लगा है यह उन्हें नहीं सूझता था । मोह जिस समय तुम्हें घेरेगा तुम्हें भी न सूझेगा। उनके भाई. बंधु, सेवक, संबंधी विश्वासवाती हो गए थे, विश्वासघात से उनके जीवन की शांति नष्ट हो गई थी, तुहारे जीवन की भी यही दशा होगी। उनका सारा जीवन युद्ध करते बीता । उनका जी टूट गया था पर उन्हें साँस लेने तक का अवसर न मिला, वे बराबर लड़ते ही रहे। कुमार शशांक ! तुम राजा होगे, पर तुम्हारे मार्ग में बराबर कंटक मिलेंगे, तुम कभी सुखी न रहोगे। भ्राता, वाग्दत्ता पत्नी, अमात्य और प्रजा सबको खोकर तुम भी स्कंदगुप्त के समान युद्ध में गिरोगे, पर स्वदेश में नहीं, विदेश में। स्कंदगुप्त ने स्वदेश में विदेशियों के साथ लड़कर अपना जीवन विसज्जित किया था, पर तुम्हें विदेश में स्वदेशीयों के साथ, अपने जातिभाइयों के साथ, लड़ना पड़ेगा । 3 "कुमार ! खिन्न न होना । तुम्हारा सिंहराशि में जन्म है, तुम सिंह के समान पराक्रमी होगे। अदृष्ट के अधीन होकर सिर कभी न झुकाना । भाग्य के साथ जीवनभर चलनेवाले संग्राम के लिए सन्नद्ध हो । इस बूढ़े की बात सुनकर स्त्रियों के समान दहल मत जाना, पूर्णरूप से अपना पुरुषार्थ दिखाने को अग्रसर हो । शशांक ! संसार में किसी का विश्वास न करना। सबके सब स्वार्थ के लिए आए हैं, परीर्थ के लिए कोई नहीं आया है। स्त्री वा पुत्र तुम्हारे न होंगे। कैसे न होंगे, यह न पूछना । अपने काले भाई का विश्वास न करना, गोरे कुबड़े कामरूप के राजकुमार का विश्वास न करना । यदि करोगे तो अदृष्ट की चक्की के नीचे बराबर पिसते रहोगे, कभी विश्राम न पाओगे। "संसार में जिसके आगे किसी को वश नहीं चल सकता उसके आगे तुम्हारा वश भी न चल सकेगा। जो सबके लिए असाध्य है वह
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