यह मूर्तियां किस प्रकारसे स्मृति चिह्न हैं? इस दरिद्र देशके बहुतसे धनकी एक ढेरी है, जो किसी काम नहीं आ सकती। एक बार जाकर देखनेसे ही विदित होता है कि वह कुछ विशेष पक्षियों के कुछ देर विश्राम लेनेके अड्डेसे बढ़कर कुछ नहीं है। माइ लार्ड! आपकी मूर्त्ति की वहां क्या शोभा होगी? आइये, मूर्त्तियां दिखावें। वह देखिये, एक मूर्त्ति है, जो किलेके मैदानमें नहीं है, पर भारतवासियों के हृदय में बनी हुई है। पहचानिये, इस वीर पुरुषने मैदानकी मूर्त्ति से इस देशके करोड़ों गरीबों के हृदयमें मूर्त्ति बनवाना अच्छा समझा। वह लार्ड रिपनकी मूर्त्ति है। और देखिये, एक स्मृति मन्दिर यह आपके पचास लाख के सङ्गमरमर वाले से अधिक मजबूत और सैकड़ों गुना कीमती है। यह स्वर्गीया विक्टोरिया महारानी का सन् १८५८ ई॰ का घोषणा पत्र है। आपकी यादगार भी यही बन सकती है, यदि इन दो यादगारों की आपके जी में कुछ इज्जत हो।
मतलब समाप्त हो गया। जो लिखना था, वह लिखा गया। अब खुलासा बात यह है कि एक बार शो और ड्यूटीका, मुकाबिला कीजिए। शोको शो ही समझिये। शो ड्यूटी नहीं है। माई लार्ड! आपके दिल्ली दरबार की याद कुछ दिन बाद उतनी ही रह जावेगी, जितनी शिवशम्भु शर्म्माके सिर में बालकपन के उस सुख-स्वप्न की है!
('भारतमित्र', ११ अप्रैल सन् १९०३ ई॰)
श्रीमान् का स्वागत
जो अटल है, वह टल नहीं सकती। जो होनहार है, वह होकर रहती है। इसीसे फिर दो वर्षके लिए भारत के वैसराय और गवर्नर-जनरल होकर लार्ड कर्जन आते हैं। बहुत से विघ्नोंको हटाते और बाधाओं को भगाते फिर एक बार भारतभूमिमें आपका पदार्पण होता है। इस शुभयात्रा के