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शिवशम्भु के चिट्ठे


को छोड़कर उसका संसार में कहीं ठिकाना भी नहीं है। इस भूमि पर उसका जरा स्वत्व न होनेपर भी इसे वह अपनी समझता है।

शिवशम्भु को कोई नहीं जानता। जो जानते हैं, वह संसारमें एकदम अनजान हैं! उन्हें कोई जानकर भी जानना नहीं चाहता। जानने की चीज शिवशम्भु के पास कुछ नहीं है। उसके कोई उपाधि नहीं, राज-दरबार में उसकी पूछ नहीं। हाकिमसे हाथ मिलानेकी उसकी हैसियत नहीं। उनकी हां में हां मिलने की उसे ताब नहीं। वह एक कपर्दकशून्य घमण्डी ब्राह्मण है। हे राजप्रतिनिधि! क्या उसकी दो-चार बातें सुनियेगा?

आपने बम्बईमें कहा है कि भारतभूमिको मैं किस्सा-कहानीकी भूमि नहीं, कर्त्तव्यभूमि समझता हूं। उसी कर्त्तव्य के पालन के लिये आपको ऐसे कठिन समय में भी दूसरी बार भारत में आना पड़ा। माइ लार्ड! इस कर्त्तव्यभूमिको हम लोग कर्म्मभूमि कहते हैं। आप कर्त्तव्यपालन करने आये हैं और हम कर्म्मों का भोग भोगने। आपके कर्त्तव्यपालनकी अवधि है, हमारे कर्म्मभो की अवधि नहीं। आप कर्त्तव्यपालन करके कुछ दिन पीछे चले आवेंगे। हमें कर्म्म के भोग भोगते-भोगते यहीं समाप्त होना होगा और न जाने फिर भी कब तक वह भोग समाप्त होगा। जब थोड़े दिन के लिये आपका इस भूमिसे स्नेह है, तो हम लोगों का कितना भारी स्नेह होना चाहिये, यह अनुमान कीजिये; क्योंकि हमारा इस भूमिसे जीने-मरनेका साथ है।

माइ लार्ड! यद्यपि आपको इस बातका बड़ा अभिमान है कि अंग्रेजोंमें आपकी भांति भारतवर्ष के विषयमें शासन-नीति समझने वाला और शासन करनेवाला कोई नहीं है। यह बात विलायत में भी आपने कई बार हेरफेर लगाकर कही और इस बार बम्बई में उतरते ही फिर कही। आप इस देश में रहकर ७२ महीने तक जिन बातोंकी नींव डालते रहे, अब उन्हें २४ मास या उससे कम में पूरा कर जाना चाहते हैं। सरहदों पर फौलादी दीवार बना देना चाहते हैं, जिससे इस देश की भूमिको कोई बाहरी शत्रु उठाकर अपने घर में न ले जावे! अथवा जो शान्ति आपके कथनानुसार धीरे-धीरे यहां संचित हुई है, उसे इतना पक्काकर देना चाहते हैं कि आपके बाद जो वैसराय आपके राजसिंहासनपर बैठे, उसे शौकीनी और खेल-