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शिवशम्भु के चिट्ठे


पड़ा था। जिस दिन घोड़ेपर सवारहोकर वह उस नगरसे विदा हुआ, नगरद्वारसे बाहर आकर उस नगरको जिस रीतिसे उसने अभिवादन किया था, वह सुनिये। उसने आंखोंमें आंसू भरकर कहा—"प्यारे नरवरगढ़! मेरा प्रणाम ले। आज मैं तुझसे जुदा होता हूं। तू मेरा अन्नदाता है। अपनी विपदके दिन मैंने तुझमें काटे हैं। तेरे ऋणका बदला मैं गरीब सिपाही नहीं दे सकता। भाई नरवरगढ़! यदि मैंने जान-बूझकर एक दिन भी अपनी सेवामें चूक की हो, यहांकी प्रजाकी शुभचिन्ता न की हो, यहांकी स्त्रियोंको माता और बहनकी दृष्टिसे न देखा हो, तो मेरा प्रणाम न ले, नहीं तो प्रसन्न होकर एक बार मेरा प्रणाम ले और मुझे जानेकी आज्ञा दे!" माइ लार्ड! जिस प्रजामें ऐसे राजकुमारका गीत गाया जाता है, उसके देशसे क्या आप भी चलते समय कुछ सम्भाषण करेंगे? क्या आप कह सकेंगे—"अभागे भारत! मैंने तुझसे सब प्रकारका लाभ उठाया और तेरी बदौलत वह शान देखी जो, इस जीवनमें असम्भव है। तूने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा; पर मैंने तेरे बिगाड़नेमें कुछ कमी न की। संसारके सबसे पुराने देश! जब तक मेरे हाथमें शक्ति थी, तेरी भलाईकी इच्छा मेरे जीमें न थी। अब कुछ शक्ति नहीं है, जो तेरे लिये कुछ कर सकूँ। पर आशीर्वाद करता हूं कि तू फिर उठे और अपने प्राचीन गौरव और यशको फिरसे लाभ करे। मेरे बाद आनेवाले तेरे गौरवको समझें।" आप कर सकते हैं और यह देश आपकी पिछली सब बातें भूल सकता है, पर इतनी उदारता माइ लार्डमें कहां?

('भारतमित्र', २ सितम्बर सन् १९०५)


[८]
वंग-विच्छेद

गत १६ अक्टोबरको वंग-विच्छेद या बंगालका पार्टीशन हो गया। पूर्व बंगाल और आसामका नया प्रान्त बनकर हमारे महाप्रभु माइ लार्ड