इंगलैण्डके महान् राजप्रतिनिधिका तुगलकाबाद आबाद हो गया। भंगड़ लोगोंके पिछले रगड़ेकी भांति यही माइ लार्डकी सबसे पिछली प्यारी इच्छा थी। खूब अच्छी तरह भंग घुटकर तैयार हो जानेपर भंगड़ आनन्दसे उसपर एक और रगड़ लगाता है। भंगड़-जीवनमें उससे बढ़कर और कुछ आनन्द नहीं होता। माइ लार्डके भारत-शासन-जीवनमें भी इससे अधिक आनन्दकी बात कदाचित् कोई न होगी, जिसे पूरी होते देखनेके लिये आप इस देशका सम्बन्ध-जाल छिन कर डालनेपर भी उसमें अटके रहे।
माइ लार्डको इस देशमें जो कुछ करना था, वह पूरा कर चुके थे। यहां तक कि अपने सब इरादोंको पूरा करते-करते अपने शासन-कालकी इतिश्री भी अपने ही कर-कमलसे कर चुके थे। जो कुछ करना बाकी था, वह यही बंग-विच्छेद था। वह भी हो गया। आप अपनी अन्तिम कीर्तिकी ध्वजा अपने ही हाथोंसे उड़ा चले और अपनी आंखोंको उसके प्रियदर्शनसे सुखी कर चले, यह बड़े सौभाग्यकी बात है। अपने शासन-कालकी रकाबीमें बहुत-सी कड़वी-कसैली चीजें चख जानेपर भी आप अपने लिये 'मधुरेण समापयेत' कर चले, यही गनीमत है।
अब कुछ करना रह भी गया हो, तो उसके पूरा करनेकी शक्ति माइ लार्ड में नहीं है। आपके हाथोंमे इस देशका जो बुरा-भला होना था, वह हो चुका। एक ही तीर आपके तर्कशमें और बाकी था, उससे आप बंगभूमिका वक्षस्थल छेद चले! बस, यहां आकर आपकी शक्ति समाप्त हो गई! इस देशकी भलाईकी ओर तो आपने उस समय भी दृष्टि न की, जब कुछ भला करनेकी शक्ति आपमें थी। पर अब कुछ बुराई करनेकी शक्ति भी आपमें नहीं रही, इससे यहांके लोगोंको बहुत ढारस मिली है। अब आप हमारा कुछ नहीं कर सकते।
आपके शासन-कालमें बंग-विच्छेद इस देशके लिये अन्तिम विषाद और आपके लिये अन्तिम हर्ष है। इस प्रकारके विषाद और हर्ष इस पृथ्वीके सबसे पुराने देशकी प्रजाके बारम्बार देखे हैं। महाभारतमें सबका संहार हो जाने-पर भी घायल पड़े हुए दुर्म्मद दुर्योधनको अश्वत्थामाकी यह वाणी सुनकर अपार हर्ष हुआ था कि मैं पांचों पाण्डवों के सिर काटकर आपके पास लाया हूं। उसी प्रकार लेना-सुधार-रूपी महाभारतमें जंगी-लाट किचनर-रूपी