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ने जिस शैली में प्रस्तुत किया है वह निस्संदेह हिन्दी व्यंग्य की बेजोड़-बेमिसाल शैली है।
लार्ड कर्जन के विषय में प्रसिद्ध है कि वह क्रूर स्वभाव का अहंकारी शासक था। उसके शासन काल में भारतीय जनता को सुख-सुविधाएं प्राप्त होना तो असंभव था ही, प्रत्युत वह तो पहले से प्राप्त अधिकारों को भी छीनने के पक्ष में था। फलत: उसने सिविल सर्विस में भारतीयों के प्रवेश का निषेध किया, उच्च स्तरीय शिक्षा के मार्ग में रोड़े खड़े किये, बंगाल को विभाजित कर देश में फूट के बीज बोए, कर वसूली के काले कानून बनाकर जनता को दु:ख-दैन्य के पाश में कसकर तड़पाया और निर्धन प्रजा का शोषण कर अपने अहं की तुष्टि के लिए दरबार रचाया तथा विक्टोरिया मेमोरियल हाल बनवाया। शिवशम्भु शर्मा ने लार्ड कर्जन की इस ‘भड़क-बाजी' और 'नुमाइशी' प्रवृत्ति में केवल 'तुमतराक' भरे कामों को देखकर यह उचित समझा कि उन्हें बताया जाए कि वायसराय होकर भी आप भारतीय प्रजा से बहुत दूर हैं। उनके हित से आपका लगाव न होने से आप ‘माइलार्ड' होने पर भी इस देश में माई-बाप नहीं बने हैं। इस गुलाम मुल्क की गूंगी प्रजा आपके सामने अपने दुःख-दर्द नहीं कहती किन्तु वह आपको हिकारत और अवमानना की नजर से देखती है। कौन साहस करे आपसे कुछ कहने का। इसलिए भंगड़ी शिवशंभु को यह दायित्व वहन करना पड़ रहा है।
यह ठीक है कि इस गुलाम देश की प्रजा आफिशियल प्रतिनिधि बनने का शिवशंभु के पास कोई अधिकार-पत्र या सनद नहीं है तथापि वह इस देश की प्रजा का, यहां के चिथड़ापोश कगालों का प्रतिनिधि होने का दावा रखता है। क्योंकि उसने इस भूमि में जन्म लिया है। उसका शरीर भारत की मिट्टी से बना है और उसी मिट्टी में अपने शरीर की मिट्टी को एक दिन मिला देने का इरादा रखता है। बचपन में इसी देश की धूल में लोटकर बड़ा हुआ, इसी भूमि के अन्न-जल से उसकी प्राणरक्षा होती है। शिवशंभु को कोई नहीं जानता। जो जानते हैं, वे संसार में एकदम नजान हैं। उन्हें कोई जानकर भी जानना नहीं चाहता। जानने की चीज शिवशंभु के पास कुछ नहीं है। उसके पास कोई उपाधि नहीं, राजदरबार में उसकी पूछ