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बारह हजार राजपूत कटि हाथी तीस सुवेस दल।। जैचंद फौज- मुरकी चली परी फौज सामंततल ॥ २॥
भर हट्ट सुलक्खनयं भरयं ।
धरि वस्तु अमोल नये नरयं । तिन वीच महल्ल सुतक्खनयं । लख कोटि धनी सुकवी गनयं ।। नरसागर तागर सुद्ध परै । परि राति सुरायन वाद खरै ।।. मचिकीच उगौलन हट्ट मझे। दिखिदेव कलासन दाव दझे॥ रचि तारवितारन मंति नवी । परि जानि हुतासन लत्तछवी ॥ मनु सावक पावक मद कियं । विन तार अतारन भार लियं ॥ इन रूपटगं मग चाहनयं । मनु सूर सबै ग्रह राहनयं ।। तिन तट्ट कलिंदयतट्ट सजं । धरमज्झन तार अनेक सजं ॥ तिन अग्ग सुमंतसुमग्गनयं । लखि लक्खचौरासिय उद्धनयं ॥ पचि चल्लिय नीलियमानिकयं । रतन जतन मनितेजकय । सभ दिल्लिय हट्ट सुनेर मुझे । करिंदत मिलत गिरंत सुझे ॥ दै सामतदामित रूपकला । वर वीर उठै घटि मत्तकला ॥
आसपास पुहमी प्रकास के पगार सूझै वनन अगार डीठि है रही निवरते । पारावार पारंद अपार दसौ दिसि बूड़ी चंद ब्रहमंड उतरात विधुवर ते ॥ सरद जुन्हाई ज ह्णधार सहसा सुधाई सोभासिंधु नव सुभ्र नव गिरिवर ते । उमड़ो परत जोतिमंडल अखंड सुधामडलमही ते विधुमंडल-विवर ते ॥२॥ १ लौटी। २ भौंह । ३ वाल । ४ दीवार । ५ पारे का समुद्र । ६ चंद्गके छिद्र से।