पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९०
शिवसिंहसरोज

१०

शिवसिंहसरोज

A n गीदर गीथ गलकत हैं। फारे करिकुर्भन में मोती दमकत मान कारे लाल बादर में तारे झलकत हैं॥२॥

१८१. चिन्तामणि(२)

आासा बाँदि मन में तमासा यह देखा हम कीजिये भरोसा ज्ाँ ज्यों त्यों त्यो तन छीजिये । चिन्तामनि मन में विचारि करि देख दम थापने दिन की जनूनी मानि लीजिये ॥ मंत्री जानि पूरो अब पूछहै सुजान तुम्हें जाई किधों रखें कहीं सोऊ हम कीजिये दीवे मन- दीवे की फिक्षिरि मति की ग्राष और जौ न दी तौ सिखापन

तौ दीजिये॥१॥
१८२. चूड़ामणि कवि

कैयो भाँति नजरि अजीतसिंह भूपति की चूड़ामनि कंहै पाए पुज को अभाव सी। आ गेंद की कैद। तापहर चंद ऐसी तेज में तैरनि ऐसी प्रभुता उपाव सी॥ संभ्रम को संधु ऐसी करम कसौटी ऐसी सरम को सिंधु ऐसी थरम को नाव सी दीन दयावारिधि सी दनवेलि-वारिद सी दिन को दारिद सी दारिद को दाब सी॥१॥ भगत के काज करै मेटि मरजाद हू को भीपमप्रतिज्ञा राखी ऐसो समरथ को। पारथ के सारथ है आए महाभारथ में ता पं लाज तजि के सरैया गजरथ को॥ चूड़ामनि कहै लहै सुख को समूह महा जाको नम कहे ते कभैया अनरथ को। नील छघिवा जग- सिंधु को नैवारो सोई से दे नवारो है दुलारो दसरथ को॥२॥ सघना कसाई क्याध केवष्ट कबीरदास इन के समीप प्रेमरस भीजिग है। सेना नाऊ नामदेव नानक अजामिल से रैफुसैं चमार सो गनाइ दीजियदु है॥ चूड़ामनि ऐसे ऐसे पावत परम धाम जिन ही सो तेरो नाम नाम लीजियतु है । मेरी नहीं लगा तो हैिं धरमजहाज कहा राज नीच जाति ही के काज १ हाथी का मस्तक २ सूर्य । ३ नाव । वे रैदास भत ।