पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
९१
शिवसिंहसरोज

११ कीजियतु है॥३॥ भूपति गुमानसिंह राबरे समान आप गुरुपग ध्यान में न इरिनगान मैं । रन के सयान में न वीरताभिमान में सु जाके जसथान हैं दिसान विदिसान मैं॥ चूड़ामनि जान ज्ञान कहाँ लौं बखान करै कान रहैं जाके सदा पुन्यकथा-पान मैं । गुनपहिचान में न राखो है जहान मै न दान मैं कृपान मैं न साधु-सनमान मैं॥४॥

१८३ चंदनराय कवि माहिलवासी
(पथिकबोधग्रंथे)
नाराच छंद

लसै ससोभ एक दंत दंतितुंड सोभई। विचित्र चारु चंदभाल देखि चित्त लोभई॥ मनोसवाचकाप ते समोद कै जपै जदा। अनेक भाँति भांंति के गनेशवेस सिद्धिदा॥१॥

(काव्याभरणग्रन्थे)

दोहा—भ्रमरी मुखरीकृत तदा, अमरी कवरी भार। गौरीपदपंकज दुरित, दूरीकर विचार॥१॥

(चंदनसतसईग्रन्थे)

दोहा—सुरी आसुरी किन्नरी, नगी पन्नगी देखि। व्रजबनितन के संग नचे, मनमाना सु विसेखि॥१॥ वेसरिमोती में झलक, बरन चतुष्ट प्रकार। मनु सुरगुरु भृगु भूमिसुत, सनिसमेत नृपद्वार॥२॥ ललित लाल मालागरे, सखियन दई सवारी। निर्धूमागिनी मंडले, सायें तप त्रिपुरारि॥३॥ गुही ललितगुन लाल लट, मोतिन लर सुखदेनि। १ हाथी का सुख २ मनवाणी और काया से।३ जरहा1 : देवों की लियाँ ।.५ चार प्रकार।