पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१२९

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शिवसिंहसरोज

११ o शिवसिंहसरोज जोरति नेह मरोरति भौंह धु चोरति चित्त निचोरति धोती ॥ २॥ हेरो तौ हेरो न जात भद्र हरि रे बिना नर्ति लागत नीको। नैन जुगें न मुरै न भली विधि कौतुक का स कहीं यह जी को ॥ को ससुझाइ कहे जसवंत हो ताको करों बलि पौरि जनी को नीष कली कहे लाज ढग सौ कहिवों क लाज जी को ।। लाँवी लाँवी लटे लोनी लटकत लंक लाँ ला लीक लागि लोचन उड़त झकझोर झोरि । छूट गये सकल सिंगर हार इटि गये लूट गये लपटि यंग अंग कोरि कोरे ॥ संकुचि स यानी अँगरानी प्रानश्यारी बाल प्यारे जसवंत के निकट तन तोरि तोरि । तोरि तोरि चित हित जोरि जोरि लाड़िले खों छोर छोरि कंचुकी जम्हात मुख गोरि मोरि ॥ है । ( शालिहोत्रग्रन्थे ) जंघे जमाय दुव युवान तो पीढ़ी ढीली दुर्द दिसि चालै । कानन मध्य में दीठि रहे थिरता करि के कटि ने न हालै ॥ जावें तुरंगम के मन की गति चाहिये ता विधेि चावुक घालैं। सोई सवार कहे जसवैत बचाये चले जो तमाल दिवाले ॥ १ ॥ ( भाषाभूषणग्रन्थे ) दोहा—धिघनहरन तुम हौ सदा, गनपति होहु सहाइ । घिनती कर जौरे कर दी ग्रन्थ बनाइ ॥ २२७जीवनाथ भाट नवलगंजवासी ( वसंतपचीसी ) दोहा-अली मान तजि सेइये, हिलिमिलि प्यारे कंत । सब जग मनभायो भयो, हाकिम नयो बसंत ॥ १ i कवित्त—मैन महराज करि दीन्हो है विहाल हास तेई ते नाथ कुलदल जैतवार है । कोकिल है कानोगोह चौरी चवाई चंदा भौंरन विसंदा केोते पेयत न पार है ॥ टे कोतवाल जाको