पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०९
शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोज १०९ २२५. जमात कधि दोहा-यायस राहु भुजंग हैर, लिखति वाल ततकाल । फिरि फिरि मेटत फ़िरि लिखतकारन कौन जमाल ॥ १॥ आजु अमावस सर्ववड, समि भीतर नंदलाल । बीचहि पारिखा है रहो, कारन कौन जमाल ॥ २॥ पावन्त भइ कामिनी, गई सरोघर वाल । सर सूख्य आर्नंद भयो, कारन कौन जमाल ॥ ३ । जि सोर, बारह पहिरि, चढ़ी आटा यक वाल । उत्तरी कोयल बोल सुनि, कारन कौन जमाल ४ ॥ मालिनि बचत कमलको, काहे बदन छपाइ । या को नचरंज. कौन है, कहु जमाल समुझइ ॥ ५ । नयन किलकिला पंखपल, थिर कि तरुनि तन ताल। निरखि परे चिषि मीन तकि, फिरि निकसे न जमाल ॥६ t मन के मनसूबा सकें, मनहीं माहैिं बिलाहैिं । ज्यां पानी के बुलबुला, उठि उटिबुझियुति जाहैिंi७ २२६. राजायशवन्तसिंह बघेल राजातिरवा (गारशिरोमणिप्रन्थे . ) मै सपने अपने मन की दुलही उलही छवि भागभरी सीई अंक निफक सो रे पपक लता मुख लूमि भु चारु धरी सी । याँ लपटी चपटी हि सर्गा जसवंत विसाल प्रसू-सी । नैनन के खुलतें वह प्रति पास परी उड़ेि जात परी सी ॥ १ 13 छूटी लटें लटकें मुख मैं जलबिंदु लसे मनों पोहत मोती। बोलत बोल तमोल विराजित रजत हैं न्थ में ससि-गोती । ज सरोज उसेजकली मु भली त्रिपलीतट आनैद तीं। ९ का २शिवः३सोलह श्रृंगार.४ फूलों की छुट्टी।