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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१४

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अन्योकनिकल्पद्रपहु , काव्यमिमांसा नेक ॥ १४ ॥ प्रस्ताघिकरतनाकरहु, बासवदता जानि । महासेन कादंबरी) महानाटकटु मानि ॥ १५ ॥ दसरूपक को आदि है, नाटक अपर प्रमानि । प्रहसन चंपू नाटिकां, भंड प्रसस्ति बखानि ॥ १६ ॥ वेद सान, रामायनों, तेत्र पुरानहु जोइ । वेदअंग उपैवेदनृ। धर्मसाबुत हो? ॥ १७ ॥ चित्रकाघ पुनि चित्र को फाइप नलोदय जानि । है पटऋतु उंपसंहति, वाकआपनहु मानि ॥ १८ ॥ पुनि विदधमुखमंडनौ, काव्य सुभाषितलेखि । सारंगधरपजंा कहौ, दसकुमार पुनि देखि ॥ १९ ॥ सालिहोत्र गज तुरंग को, बैदकजुत है सोइ । वरचारित नाटक वहुरि, भारत चंपू जोइ ॥ २० ॥ रामायन चंपू तथा) अनिध चंपू और । आनंदशृंदावन सहित, चंपू है सिरमौर ॥ २१ ॥ चंपू औीनरसिंह को, चल चंपू सुनि लेहु । पच--जुत काबू को, चम्पू नाम कहेई ॥ २२ ॥ प्रथम काव्य रघुवंस है, कालिदास कवि कीन । तीनि माघ कटिकृत सुभग, माघ बैस्य धन हीन ॥२३॥ सिरीहर मिश्र कियोनैध काव्य प्रबन । भारवि कियो किरात को, अर्थ बहुत जुत प)ि ।२४॥ मेघदूत संर्न फियो, कालिदास कवि तीन । बृहत्त्रयी खुशंस पुलि, साष नैध गीनि ॥ २५ ॥ १-, व्याकरण, निरुक्ल, ज्योति, निघंटु आदि । २धर्वेद गांधचैयद आदि । ३-गंभीर ४ कुमारभघ ।