पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१३

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कबिकुल को नाला कहतसें गर शिव मतिमंद । हम विन कृस्नायतन, कृपासिंधु जगबंद ।। २ ॥ पहिले भापत संस्कृत, साहित्यम के नाम । त्र भरत ऋषि के क्रिथे, लोवैध गुधाम ॥ ३ ॥ व्याख्या काव्यप्तान कवि, मम्मट कियो मकास । दूजो साहित्यंद है, विक्रन बुद्धिविलास ॥ ४ ॥ दत अंग सदित्य के, कीन्हो दफे उल्लास । पघल यू में हियो , सहित रसद विकास ॥ ५ ॥ साहेित काव्य-द है; छाया काव्यपास । मस्ट को व्याख्यान रि, शियों नाम निज खास ६।। लाहित-दर्पण पुति स)ि रसनाकर नाम । अलंकार-सरचस्व पुनि, चंसेफ कलाम ॥ ७ ॥ अलंकारलेखर बहुरि, रस-गंगधर मार । रुद्राष्टालंकार पुनि, बागोटालंकार ! ८ ॥ रसरस्वतीकएठभरन : काव्याद स्वद । चित्रमिमांसा दीक्षितौ, किधो कुलयानंद ॥ e ॥ रुद्रप्रताप सहित्य को, काव्य-विलासदि जानि । साहित संग्रहसार पुक्ति, रस्सतरंगिनी भानि 1 १० ॥ रुद्ट तिलकसिंगार किय, रसमंज़रि कवि भा । ग्रंथ नील उजत मनिडु, गीतगोविन्ददि जाड ॥ ११ ॥ करनार्पत श्रीकृष्ण को पुनि भामिनीक्लिास । गोवर्द्धन की सतसई, अफ्रंगरंगपखास ॥ १२ ॥ नागराजकृत सतक पुनि, कांतासतक कटाच्छ । ये सिंगार के ग्रंथ हैं, रसडनान के आच्छ ॥ १३ ॥ कवि की कल्पलता शत, काठयकल्प है एक।