पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१५८

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शिसिंहसरे १३९ २६१. दयाराम कवि त्रिपाठी ( २ ) s ९ हाथी के दाँत के खिलौना बने भाँति भाँति बाघन की खल तषी सिप मन भाई है । मृगन की खालन को बढ़त हैं जोगी नती बेरी की खाल थोरा पानी भर लाई है ॥ साघर की खांलन को वाँधत सिपाही लोग ऐंड़न की खाल राजा रायन गुहाई है । कहै कवि दयाराम राम के भजन विन मानुस की खाल कल्लू काम नहैिं आई है . १ ॥ २६२ दयानिधि कवि वैसवारे के (१) ( शालिहोत्र ) दोहा-सुकषि दयानिधि सों को, अचलसिंह मुख गानि ! सालिहोत्र को ग्रंथ यह; भाप कर हु वखानि ॥ १ ॥ अचलसिंह के हुकुम ते, जानि संसकृतपंथ । भाषा- भूपित करता हाँ, संलिहोने को ग्रंथ ॥ २ ॥ २६३. दयानिकिवि ( २ ) सहज बनाइत्र न ये है कवितईि क मुफघिन मारग की दीठ की दसाले सों । रस नि प्रकार जुत जतिभंग पिन अरथ प्रगट कोऊ दून न साले सधे ॥ बरनत दयानिधि विधि विधि तापन सों सरस्वती का छाप हिय में धसाले साँ । करि के कसले हित वरम गसाले कवितन के मसाले लावें रड ’ के रसाले स ॥ १ ॥ नखअग्रभाग स्यामताई जमुना है सोई ध्य संपदाई दरसाई गंग तन में 1 अंत अरुनाई मेंहदी की कहि दी है अति उपमा सरसुती की परत तन में ॥ गुरी अंगूठा गेि मेरु से दि- खांत ताते कदी वही महंी दयानिधि उकतैन में । बचा ते न्यारी रसधारा है जामें ऐसी दसधा त्रिवेनी मियापदमन में ॥ २ ॥ ' २ १ बकरी । २ शिखरचोटी । ३ उक्ति। ४ दश तरह की ।