पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१६६

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शिंसिंह सरोज १४७ ताते तिन्हें तन जाति गिने चुने गुन सौगुनो गाँठि परंगों ॥ पाँदवारो बड़ो : रिझवार ' हैं देव नेक सुढार ढरैो i छोहा बैल वही जो अहीर को पारहमारे हियें की हरंगों १० ॥ का सों कॐ मोंह मोहेिं मोही कीं परी है देव मोहन से मोह मह।पा।या में मिलाइगे। मनु से मधुस मन मन से मुनींस मन मानी मानधाता मानों मैन पघिलाइगे ॥ बावन से रावन से राम से खेंल खेति खलन की खालनि खेलौना ज्य खेलाइगे । काटे कान्त बँधंाल ऐसे वली वलभद्र ऐसे बलि ऐसे वाल से बबूलां में घिलाइगे।॥ ११ ॥ बैठ सीसामन्दिर में सुन्दरि सवार ही ते दि के किंवार देष छवि साँ छक्षति है। पीतपट लकुट मुकुट बनमाल धरि करि वेप पीको प्रतिबिम्ब में तकति है ॥ है के निरसंक प्रति अंक भर कैटिचे को जन पसारति समेटति जकति हैं । चैौंकति चाति चितवति: उझकति उर भूमि लचकति सुख मि नां सकते है ।' १२ ॥ ३०३. दत्त कवि देवदत्त नाहरण सात्रि ज़िले कानपुरवाले अंवर प्रतर तर चंदक. चहल तन चंदमुखी चन्दन महल मैन साला से खासे खस बने तहखाने तर तने तने ऊजरे बिन हुये लागत हैं पाला से ॥ दत्त कहे ग्रीषण गरम की भरम कौन जिन गुलांव आज ही भरे ताला से। झाला साँ झरत झर ज्ञापन सौं नारा बाँधि धारा वाँधि छूटत फुहारा मेघमाला से ॥ १ । डो पौन परसि परति जुत बँदन स बोर्जे मर चातक चकित उंची हरि मैं । कहाँ लौं बराऊँ दईमारे मैन बानन सों थक रही केतिक डाइ करि करि मैं r दत्त कवि प्यारे मनमोहन न पाऊँ कह सन ससुझाऊँ री काँ लाँ धीर घरि मैं । छाये मेघ मगन सुझाये। १ एक राजा । २ कालपी लप । ३ जूदेवा ' व ४ डर ।