पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१६९

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शिवसिंहसरोज

'6 शिंघसिंहसरोज पै. पुलुमी पवन अंक्रास: बरिः पावक संसिक दिनमनिं। अह: कपत अजगर समुद्र मुग ते मंतंग गनि. . लखि पतंग अरू मीन अमरजुग निधि मधुमाछी । के पिंगला निरस बल लीला छवि आली ॥ विजकुमार काणु विरंचिंमन्धिर गुन लीन्हो F मकरी ी जोग जान अपनो ततु चीन्हो : चौबिस गुरु सिंअछा प्रगटे भेंदुःबाद सब परिइं. । मध्य साच्चेदानन्द-यने देदत हरि ए व - १ ॥ ३०७द्धिजन्चन्द्र कवि कोपि करबर गझो खर्ण के खरगमतेि भूतल खसाई मीर जेते सरदार है । कहै द्विजचन्द्र रुएड्सएंडन पटित यहिएडनचशुण्डा तेत आमिष आहार है ॥ सनत सलिल तीरगौराको गोसाई टेरे धौंरा बहि चल्यो तहाँ पाई थिर ना रहें । काहे रे कुएं करें हाहे से . कर्ण होते है जतीन पाराबती कहे पार है : १ ॥ ३०८: दामोदरदास पद नागरि नय लाल संग संगभूरी रा.। स्यामअंगे बाहु दिये कुंवरि पुलाकि पुल िदिये मंद मंद हँसन पिंया कोटि मदन लाने तरु तमाल स्याम लाल लटी गयण बेलि' निखि संखीछवि. सके लि नूपुर कल वा ा दामोदर हित सूबेस सोभित सखि सुख सुदेसे नव निकुंज भंवर गुंज़ कोकिल कः गा. : । ३०४. देवीराम कवि जोग अरु जल जप तपे सेब अंप में उंटि के पौन की राह बेके । ज्ञान दरम्यान में ध्यान पैद हुआ दान सम्पान की टेक टेक ॥ ऋद्धि औ सिंद्धि नौ निहेिं बीचोरि के दु:ख औओं सुख को दूर्टीि फेंके। छोई दो i३ कंधे ।