पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१७

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१ ८ 4 के । गोरियों के प्रबंध भाषा में लिखे । संवत् १२२० में कुमार पाल खींची महाराजा अनह तारा के नाम से एक ग्रंथ भाषा में कुमारपाल चरित्र नाम बनाया गयाजिसमें महाराजकुमारपाल के जीवनचरित्र और बंशावली का वर्णन है । संवत् १३५७ में चंद कदीश्वरशव सारंगधर बंदीजन ने, जो कापविद्या में महान पंडित था, मीररासा रपीरका ष, ये दो ग्रंथ भाषा में बनाये । हमीररसा में महाराजा हमीरदेव चौहान रणथम्भौरव ले का जीवनचरित्र और हमीरकाव्य में काव्यविद्या के सत्र अंग वर्णन किये | संवत् १४५७ में महाना * कुंभकर्ण चित्तरगढ़ के राणा ने गीतगोविन्द को संस्कृत से भापा करके नाना छन्दों को प्रकट किया । उनकी रन मीराबई ने कवियों का ऐसा मान किया ।

िउस समय भाषाकाव्य बनाने की हिन्दुस्तान में बड़ी चरचा

होगई । जिस स्थान में राणा कुंभकर्ण और मीराबाई अपने इष्ट देव के सामने अपनी बनाई हुई कविता को गाते और अन्य कने श्वरों के काव्य को श्रत्रण करते थे, उसकी तैयारी में १९ लक्ष रुपये खर्च हुये थे । संवत् १५०० में भाषा-काव्य सारे हिन्दुस्तान में ऐसा फैला कि गाँव-, घरघर कधि हो गये । इधर ब्रजभूमि में वल्लभाचार्य, विस्वामी और हरिदास जी महात्मा के शिष्य ऐसे कविता में निपुण हुए, जैसे कोई न हुए थे और न कभी होंगे । सूरदास जी, कृष्णदास, परमानंद, कुंभनदास, चतुनछीतस्वामी, नंदास, गोविन्ददास, ये आठ कवि अष्टछ, के नाम से विदित हुए । इन आठों ने शूनगररस के समुद्र ब्रजभूमि में वहाथे, जिन समुों ने सारे हिन्दुस्तान को

  • यह गलत है । मीराबाई के पति भेज राजा थे, जो राना साँगा

के बेटे थे, और थोड़ी ही अवस्था में मर गए ।