पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१८०

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शवसिंहसरज १६१ ताह को मृत औ मात को त औ नारि को सूरत लें वनलागा ॥ १ ॥ सरन न न मनोरथ कीन उतपत मन गत नाहीं उन पन मन सा दुरी । बाचा को न लेस बयारथ को न परचेस वचन को को महामुनि नादि की पुरी ॥ चिभिंत विचित्र चतुरा न कोऊ महामुनि नानि मुनीर अनीसुर को ता पुरी। चित्रित चतुर चतुरातमा न मनियत तुरिया-श्रतीत ताहि कत तु-तुरी ॥ २ ॥ जागत है कि न सोइयो लोक 8 सोवत है जग जोबन सोहै । आपनी हरि विसारि के ग्राषु आए बिसारि न खान सोहै ॥ सो निपटनिरपृजन जैसे को तैसो हुछ नहीं होधन सोहै । । काहे को रोवत है विन काज सो तेरो सरूप न रोवन सोहै ॥ ३ ॥ ३३६. दन कवि बीर विरदैत बाँके बेन विदित सुने सोभा मुखसिंधु सींघ बानक बनक्षत को । कैसे तुम ताड़का व्हारी सुतसेनाजुत-छूटत न डोरा गाँठि कैफनकनक को ॥ नंदन य रावल के भीतर नवेली आती करती विनोद अंग धरि के जनक को । छोरी के निहो कर जो कहीं हारे हम, यह तो न होय लाल तोरिवो धनक को 1१॥ ३३७. नंद कवि। बोरी है पिचक झकझोरी है झटकि िपट फरी है कलस इहाँ व कोऊ फोरी है । जान जनि भोरी है कहूँ की कोऊ छोरी है। न थोरी है ढिठाई जाकी बहियाँ मरोरी है ॥ नंदजू कहत कवि गोरी है तो काको कहा जानत ौ कलू काके कुल की किशोरी है। गोपगनघोरी जनैक , होरी है। है जाको एहो कान्हप्यारे हरि तौ कहा वरजोरी है।॥ १५ निपट अतिंत गात याही मग आधे प्रात कौन कही बात जात गौवन के पqाजे री j कोटिन अनंग के आग S I गोपों में श्रेष्ठ । २ दिता ।.३ .काला । ४ अंगरहित ।