पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१८२

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शिवसिंहूसरोज १६३ s हैं n नंदर कामद में मिलौ संतन सभा में रे । दामें जोरि चामें चिक नमै :रि जाने धाँ न जाने को कहा मैं फिरि हों याँ कहाँ में रे 11 १ ॥ ३४० नाथ कवि (१ ) मदनलुकासी किध राधे कुंदका-सी मनों कंजकलिका-सी कुच जोरी ही विकासी है । । गाँसी भरी हाँसी मुख भासी मोहफाँसी सद जयन उजासी नेह दिया की सिखांसी है ॥ जाकी रति दासी रसरासी है स्मा-सी कौन है तिलोतमा-सी रूपसदन विकास है । काम की कला-सी चपला-सी कवि नाथ िधौं चंपतरात- सी चारु चंद्रिका प्रयास है ॥ १ ॥ ३४७१ नाथ कवि (२ ) दीरघ रौतारे भरे जासं जलधर यारे काजर-से कारे जग जैतैयार जंग हैं । घ बननाते ल-कैपित सुहाते भरभर धन नाते और तजत न संग हैं॥ नवल नघाव श्रीज़लआलीखान बली कवि नाथ भली पति करें बहुरंग हैं । चिय स बलंदवारे इंद्र के गयद ऐसे हिम्मति के कंद मोहैिं दीजिये मतंग हैं ॥ १ ॥ ३४२. नाथ कवि (३ ) समर के सागर उजागर धरम ही में नागर रसीले चितचोर बनितान के । चतुर चकोर मृग खंजन सरोजन के नाथ हैं जसीले ये बखाने कवितान के ॥ सूधन को मान महाराजन को सान वैरी दन विरा ऐसो मान लेंघवन के 1. दवि जात देखत दकि जात हहरात इछन नरेस वेद मानिक सुजान के ॥ १ ॥ जस, दस दिसन मैं छाइ रहो महाराज मानिक प्रचंड रिपुदल के दलन ते। बड़े बलबत्ता जे माँसी कलकत्ता भरे लीने टि मता सर्वे - चिकनाता है । २जीतने वाले। इंद्र। ४ गई ।।