पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/१८३

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शिवसिंहसरोज

१६४ शिवसिंहसरोज कर्रा के बलन ते ॥ मबल फिरंगी ऐसो तोप रामचंग करें घातें बहुरंगी भरे हिम्मति छलन ते। फ़ौज चतुर गी तब च ढ़त अभंगी नेक लागी नारिरंगी छोड़ि संगी के चलन ते ॥ २॥ m ३४३. नाथ कवि (४ ) दिल्ली के अमीर दिल्लीपत्ति सर्षों कहते बीर दक्खिन सों दंड लै सिंहल दबाइहैं । जगती जलेसर की जोर लै सुमेर हू लाँ संपति कुबेर के घरने की कढ़ाईहैं ॥ कहै कषि नाथ लकपति हू के भौन जाइ जम टू सों जंग बुरे लोह को चंबाईहैं । जाति में जरेंगे कूद छप में पगे एक रूपभगवंत की मुहीमै को न जानें ॥ १ ॥ ३४४. नाथ ( ५ ) हरिनाथ गुजराती ।ह्माण काशवासी ( अलंकारदर्पण ) दोहा रस भुज बसु औरु रूपदे, सम्बत किय प्रकास । चंदार सुभ सत्तमी, माधुंव पंछउजासं ॥ चंद सो आनन पूरे प्रकासsरु नैन से , जैन कहावत तेरे । देखी सुधा तुष बैन-सी भामिनि हैं परतथ्छ रतीं रति मेरे । नाथ भले इन कुंदकली ते भये दिय दारक दंत घनेरे । याँ करकंजल ने विधि जू पुनि तोईि ॥ारी फिते दे रे .॥ १ ॥ ३६५ नाथ कवि (६ ) मुंभनिकुंभबिनासिनि पासिनि बासिनि विन्ध्य गिरीस की रानी । संकर संग विलासिनि अंग हुलासिनि श्रीकमलासिनि दानी ॥ जाहि सदासिष ध्यान घ, अरु मान करें मुनि चातुर ज्ञानी । नाथ कहै सोइ सैलकुमारी हमारी करें रखवारी भवानी ॥ १ ॥ १ एक छ ।२ सामना ।३ वैशाख ।४ शुक्ल पक्ष स५ पाश लिए है।