पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२१

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शिवसिंहसरोज


एक चरन म पदुप, एक पग कैझन वज्जै । एक हाथ में डमरु' एक कर कंकन सज्जे ॥ एक छोर है चीर, एक उरियाँ मृगछाला। एक कान मां वीर, कान इक युद्रा आला ॥ अधलीस अलक, आथसिर जटा, गंगा बेनी सीस धर। आमरवा आासन भौ अरबुंगी शंकर गवेर ॥ १ ॥

बक्री बादशाही घरों हीं सलिलै प्रलै के बढ़े राना, राय, उमराव सब को निपाह्न भो। बेगम विचारी बहीकत न थाह लही, बाँधौ गैर गाढ़ो गूढ़ ताको पक्षपात भो ॥ शेरशाह सलिल मरे को बब्यो अंजवेश बढ़त हुमायूँ के वड़ो ई उतपात भो। वनहीन बालक अफव्वर बचाइवे को वीरभान भूपति अब्रैवट को पात भो ॥ १ ॥

संगर समत्थे सज्यो धो-धनी विश्वनाथ वीरता को रूप खूर्व अयाज़ंद लबात है । मारू बजे बाजे गाजे ङद पैंतरे भारे सुभट सम्र सावधान दरसात है 1 विक्रम विहद हिंदुवान ह अजवेश सिंह के नंद के अनंद अधिकात है । तरकत जात बंद करकत जात कौच, फरकत वाडु, बजी थरकत जात है । १ ॥ जोगिन को जोग भोंग मोंगिन को यामें सर्वे रोगिम के रोग मेटिवे को विधि करी है । ज्ञान ध्यान दानी सनमानी सदा संभुजू की बुद्धि की निसानी बानी बेद उखरी है ॥ पुत्र सरसावनी है पावनी परम आजवेश जी जियावनी प्रसिद्धि सिद्धि-जरी है िडॉगी उमंग ते वे तरल तरंगभरी एक रंग ही वे अनेक रंग भरी है ॥ २ ॥ १ एक तरफ़ । २ पार्वती। ३ जल । ४ गिरना, पतन । ५ रीवाँ! ६ हाथी । ७ दाँतवाले .८ घोड़ा। निकली ।