पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२१५

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शिवसिंहसरोज

१९६ शिवसिंहसरोज _ & छा जानि साह सूबा अपने ऊबा है ॥ स्याम सखा सखिन समान कौन और वानी गैब की आवाज महमद कहि तूयां है । एक छत्र चचा छितिषाल होइ अंत्रिन में छहै छवि वजी त्याग तेग के अजूबा है ॥ १ ॥ कटक कटीले काटे कोटि कखुिद वारे देत गढ़ गढ़ी ढाहि नेक ही की हाँकरे । ज़िन की सलाषत लखे ते और राजा राइ ऐसे लग लगन लग हैं जड फाँकरे ॥ किये ऐसे जाहिर जहान जहाँ ताँ जिम दान की आहाष सों कहाँ न करी करे । रचे करतार अवतार के भरतार मही मेंहू हा बांल तेग त्याग करे ॥ २ ॥ ४१६. विजय कवि, राज विजयबहादुर वरी लाख के ढग मीन छिपे बन में मन में अरविंद सकाने हैं । बड़ी बेनी इंगिति देखिझखें कटि केहरि चाहि तनाने हैं ! उकसैंह उरोजन देख़ि बि मन देवन के ललचाने हैं । मुखचंद की पेखि-भा दिन में दिल में चकवा चकवाने रहें ॥ १ ॥ २७. विक्रम, राजा विजयबहादुर चरखारी ( बिक्रमृबिरदाश्वनी ) दोहा-हाँ वे तेरो भयो, तापर पेखों कर्म । कहा दास की दासता) का प्रभुता को धर्म ॥ १ ॥ चारि जुगन मुनि चारि भुज, लगी न एती देर । अब प्रभु कीजतु है कहामेरी बेर अबेर ॥ २ ॥ (बिक्रमसतसई ) दोहा-जय जय जय असरनसरन, हम सकलभवपीर । जन विक्रम मंगलकरन, जय जंय श्रीरघुबीर ॥ १ ॥ हरि राधे राधे मु हरि, कर निसिदिन करि ध्यान । राधे रट राधे लगी, ठ काम्टर पुख कान ॥ २ ॥ जे उर* पर सखीलखी नवल अवरेच । h