पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२१४

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शिवासिंहसरोज ११ ५ मरमभेद कॉं सदर नदिंन त्रिभुवन समता कर ॥ अनि रूपरासि गुन सकल घर नर मोहनमय मंत्र पर। बढत बाल कवि रसिकबर पंकजदल सम नयन पर ॥ २ । ४१६ चालकृष्णकवि (२) सम्मति सुमति नीकी विपति सुधीर नीकी गंगातीर मुक्ति नीकी नीढ़ी के नाम की । पतिव्रता नारि नीकी परहित वात नीकी चाँदनी घु राति नीकी नीकी जीति काम की ॥ बालकृष्ण बेत्रिद उग्र नीकी भूपुर की भक्ति नीकी नीकी हैं रहनि हरिधाम की 1 अगन की हानि नीकी तात की मिलनि नीकी सुर मिली तान नीकी प्रीति नीकी राम की ॥ १ ॥ हरि कर दीपक बजानें सख गुरपति गनपति झाँझ भैरों झालर झरत हैं। नारद के कर बीन सारद जपत जस चारि मुख चारि बेद चिधि उच्चरत हैं । पमुख रटत सहसमुख सिख सिख सनक सनंदन ठ पार्श्वन परत हैं । बालकृष्ण तीनि लोक तीस और तीनि कोटि एते सिवसंकर की आरती करत हैं ॥ २ ॥ ४१७ब्रजेश कवि चल मनमोहन की छवि में छकी हों छिन एक हू न भूलत लगाई प्रेमडोरी हाँ। भनत ब्रजेस साँची सरल सुभाय भरी चाय भरी वृंदावनचंद की चकोरी हाँ ॥ गोकुल में बसत न गोकुल ते काम कटू गोकुलेस ही के बस गोष की किसोरी हदें । गोरी दे दे. को गोरी ना कह री मोहैिं हाँ तो सरावोर स्याम रंग ही में वोरी हाँ ॥ १ ॥ ४१८. विजयाभिनंदन कवि आगेम की बात जो वखानी व्यास वेदन में सोई सो करत कहे सुनत अपूबा है । विजयाभिनंदन प्रगट फूडेमी में साईं मन- १ भविष्य की ।२ पृथ्वी ।