सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

शिवसिंहसरोज २० है बेनी व्यास की बुराइ तीनी रती रती सोभा सघ रति के सरीर की । अब नौ कन्हैया को चित्त हू चुराई लीनो चोरटी है। गेरटी या छोटी अहीर की ॥ ६ ॥ गेहद देह मेह को न छोभ लोभ मान रूड लाज परलोक लीक तीनों ज्यों नगन में । उन्नत उज भार चंपत चमक चारु लपटेि लपट जात नाग हू पगन में ॥ न कवि कहै क कत न बनें ऐसी गनि लगाई हाइ कौन सी लगन में । भूमि हरियारी हरियारी से सिधारी प्यारी निर्मित लुधियारी गुंधियारी सी आंगन में ॥ ७ ॥ पृथु नल जनक जनजाति मानधाता ऐसे जेते भू भये जस बिति पर छाईं गे । काल चक्र परे सत्र करन होत जात कह लौं गना विधि बासर वेता में ॥ बेनी साज सम्पति समाज साज सेना कहाँ पाँयन पारि हाथ खोले मुख बाइ गे । डद्र छितिपालन की गनती गनाई कन राशन से वली ने बबूला से विलाइ गे ॥ ॥ बेदमत सोधि लोधि देखि के पुरान सर्वे संतन असंतन को भेद को बतावतो । कपटी कप्त कुर कति के कुचाती लोग कौन रामनाम टू की चरचा चलात्रतो ॥ बेनी कधि कहै मानो मानौ रे प्रमान यही पादन से हिये कौन प्रेम उपजावतो । भारी भवसागर में कैसे जीन होतो पार जो मैं नहीं रामायन तुलसी बनावतो ॥ है । देखत ही गन दुरे हैं दौरि बारि मीन कानन कुरंग दिये खंजन सफ़ान है । बेनी मखतूल सी घिलो बलि बारबार छकिगे भुजंग छोड़ दियो खानपान है ॥ सोहैं कुचगांव गुलाबी गोल गुस्वज से गंदा गजभन को गंजत गुमान है । चित दे चोर चिर्त चौंकत न चीन्दि पड़े चोखो मुखचन्द चारु चन्द के समान हैं ॥ १० ॥ भूमि रहे घन शूमि घने तल बोरत भूमि मनो चह्नया थिरि ।