पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२२६

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शेवसिंहसन २०७ ) । सीतल व्य८छ सँभीर भरे जल गंग ज्यों त्यों सतरंगिनि साजत ॥ सीत उदाये गुनी रति काम लौं नारि सवें नर छाजत.। पून पड़े चले जर्सी पुन्ष सु भूमि को भूषन देवरा राजत ॥ १ ॥ चाँदनी सी ल से mाँदनी चारु चंदोवा में चंद की सोभा घितानी । . तानन लेती ते बारय लगे तूल न तौल तिलोतमा बानी । ॥ टि सिंहासन राजत आए लसे कवि कोविद बीर खुमानी । दग्वि सभा बर विक्रम भूष की नीकी लगे न मुसकहानी ॥ २ ॥ आाई न जोति अवे तरुनाई की छाई म प्यारे की प्रीति अहै । बात सुनें रस की बलदेव लू में न री करे नहीं तेहै । छडयो न खेल प्रज गुड़ियान को चौसक तें लगी देखन देहै । यान्हे विलोकि बिलोकि िरहे छटू बोलै न डोलै न खोलै सनेई ॥ ३ ॥ याफी निकाई न पाई केई तिय मैनका मैन की जई सी लागै । कानन लागे लगे बह जैन कहें मृदु वैन सुधारस पा ॥ नद लेंगीत कलान प्रवीन लखे तनदीपति के तम भागे । चौस लगे घर कंचन लीपो लो राति जुन्हाई कि जोति न जागे ।.४ ॥ मैंने विलोके रहै सदा लागू की जोई कहै सो, करै परि पाँइनि । नंदजिठानी रहै सुख पाये जु देखत ही करें चौगुने चाइनि ॥ वधि रीति सदा बलदे जाने नहीं कह धाइडपाइनि । केती तिया खुफिया मुनी देवी न देखीसुनी कहूँ ऐसे मुभाइनि ॥ ५ ॥ आरसीभौन भरी छवि साँ बनी देखे बनी अपनी परछहीं। जाकी रतीक रती न लहै रति क्यों कहिये तिय औरन माहीं ॥ ताही समैन बलदेंघ . गही ललना की लला कर वाहीं। लाज-मनोजमयी म हैं गयो हाँ न कड़ी न कहीं पुरख नाहीं f॥ ३ ॥ १ तेहा श२ पैदा की हुई।