पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२३

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहसरोकें ए . हैं । ६. अवधेश प्राण बुन्देलखण्डी चखारी (- १ ) ले गई मोहैिं कलिंदी के कृत ढत दिखाइ गोरी सी के गई। के गई छाज छिथा तन में मन ही मन मैनमरोरने दे गई ॥ है गई दाग दगा करि* श्रवेधेश कहें तन तापन दें गई । है गई नेक द लाई क सुधि गोरी गुघारिन तो मन ले गई ॥ १ ॥ . आबघेश टण छूपा के (२ ) से जमें नासतो) को भ्रम को विनासतोपिसाव को उदासतो निसाचर को त्रासतो कैसे बर्ष मासतो, प्रमोद को हुलासतो; पताल भू प्रफासतो विपत्ति को नित्रासतो ॥ अधरा दासतो को देष विद्यासतो न ने उजासतो दुनी को कोऊ कासतो । कैसे वेद भासतो प्रशासको मकतासता कदाचि तेजराहैि जी न भासैंकर भासतो ॥ १ ॥ मोतिन चौक पुराइ नी गनी गायनै बारंबंन बुलांशहीं । रंगद्रिंग के लै लें कुमुस्भ उमंग स मालिनि सर्षों ग्रुधवाइहाँ ॥ है अवधेस द्विजेन को धन कंचन के घट दीप चंगुइहों । सानि के साज समाज भली विधि अंान ललाके वसंत बँधाइहीं।i67 ८, अवरुद्ध । छपानाथ बघि सी छबीली छाइ छिति पर बीरनिधि वीच भी जुटी गंगधार सी छेद करि तारा नभ जैर रही छोरनि लौं छोनील फरि छोमां जीते सीसहार सी॥ अध्यकस - कीरति है अंद ऐसी छाजत गिरा के मुख सुषमा अपार सी । यदि ड्रायो बेदन के मिड करि दारिद को आरके कविंदन को मुख के अगार सी ॥ १ ॥. १ तमोगुण और अंधकार में कदाचित्र ३ सूर्य।: ४ वेश्या । \ चना । ६ पृथ्वीतल शे