पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२४

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शिवसिंहसरोज

शिसिंहसरोज़ ह, अब्दुलहिमान कवि यमक शतक भोहा:-वानी वानी देत सुभजंस वानी तस रीति। रहैं. मान ' तांकों तवें, रहै सान चित प्रीति ने १ ॥ साजस छत्र-पती सुपति, दिल्लीपति ' प्रवीन । पता आलमसाह त, कुतबुदीनपदलीन ॥ २ ॥ ताको मन सबदा जंगत, कवि अब्दुलहिमान । कवि ईश्वर ईश्वर कियो कियों ग्रन्थ यूभिराम ३ । 'चुनी चुनी पहिसुफंगरी, ऊंनी ’ भौतिदल कीन । घनी बनी रंस सी सरत, तनी तनी हुंच पीन ४ ॥ बांरी में बारी बैंस में, वारी सौर्ति सिंगर । हारीदारी करते हैंहरी हेिंरत हर 1 ५ ॥ १४अंबुज कवि है महाराज:हुय हांथ मैचक तो कहा ज़ो ने घाहुबल निज लानि खायो ना lपढ़ द्वि- पण्डित प्रवीन ने भये तो कहा विनयविवेकजुत जो पै ज्ञान आयो ना ॥ अंबुज कहत धन धनिक भये तो कहा दान करि जो मै निन हाथ ज़त छायो ना । गराजि गरबि घन योरानि किये तौ, कहा चातक के चच में जुछ रंच नीर नायोन ॥ १ ॥ छीधे को चीर, कंधों नीर सुथर्ष को है: कैथों हीरहान की हादही ऊँचारी हैं। हसन की पाँति, कैधों गुन की है भाँति भली की रति की ति, कैथों सांद की सारी है। अंबुज कहत बख़्धा में के सुधा की धार, कैधों हासरस की हौल भर भारी है । वैद उजियारी की विहार की वसीफेरन सीकर—वारी कैधसनि तिहारी है 1 २ ॥ ३२, आज़में कधि वैससधि नवला नवोद बाल स्यामा अरु कहिये किसोरी १ क्षीरसागर ।२ गया ।३ पृथ्वी । वे नई ब्याही बहू