पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२४६

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1 शिसिंहसरे बलदेव सुधासम केवल नाम अधार सवें धल टेगे करें । परि राखे हैं मान निछावरि को मन चेरेन छू कर चेरो करें। डर .मानि भरे डग दूर ही साँ कुटीन को रारी हेरो करें ॥ १ ॥ हवें सघ भाँति अधीन लखो मै चाइन के गन ने न मानते । छूटत नेने नहीं सहर्जे बलदेष सवे गुरुलोगदू जानते ॥ ता दें भ कुलकानि कथा करि रोष हिथे सतरीति बखानते । होनी तै। : हैं ती है हकनाहक ही सब ये दृग तानते ॥ २ ॥ ८३ बलदेवदास जौहरी ( ६ ) हाथरस के निवासी ( भाषा कृष्ण खए ठ) दोहा-मिरि सम्ड गिरिजा ए मिरि, गनपति सद्मा मनाथ । विश्नचिनासन एकरदः लूज़े सदा सहय ॥ १ ॥ कवि महाराजराजा स्त्रीअनुपगिरि तेरी धाक गालिब गनीमैन के पैर गरे जात हैं । भनत बाजेस भयो भीम भी भरम महादि को उदार भूधार धरे जात हैं । तेरी सीलता को बीरता को धीरता को युनि गुनीजन दुनी के हुलास भरे जात हैं । मेक माँगन में हो थरे जात पर प्रबल परिद तेरे पौदा परे जात हैं ॥ १ ॥ ४८५ विश्वनाथ प्रताई (४ ) मानुषजनम करतार तोहिं दीन्हो और ताकी रे कृन्नी तू ना सरन पयो रहो । चैौरासी नम्यो है कहूँ नेक न लैम्पो है भाजा भाभ याँ सम्य है अघोघन भयो रहो ॥ पाँचन सॉ मिलि व रस में मगर बैठ जौन करे काम जा कारज सस्यो रहो । नाम ों न भयो विस्वनाथ यों ही वृढ़ गयो लोहे मध्य पींजरा में पारस धयों रहो 7 ॥ ४८६, बालनहास कवि (रमलसार) दहाइन्दु नाग अरु बान नम, अंक अब्द खुति मास । १ बड़े-। २ शत्रु। ३ बिरमाबिल मा