पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२७

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शिवसिंहसरोज

शंसहसराज १६ अंदास पद दहेय कृपा लती सीता की । नवधा भक्ति ज्ञाने का फैसला . रही संफ बेदगीता की ॥ बेद पुरान कहाव्रत पटमत करतं वाद नर बणु दीता की । झगर करत उरझो नहिं पुरझो मिटी-न एक दूसभय त:की ॥ जाकी और तनफ भरि चिंतबत करत सहाय राम जन ताकी । अग्रयती भजु जनकनंदिनी प्रापडर ताप-रीता की । ५१ | १७. अगर . कुंडलिया अगर जीव की दया विन धरम अंग सव धूत । गाव वधावन का क पुरुषधरम नहिं त । ॥ पुरुबरम नहिं पूत सकल तस्थ करि आये । जज्ञ, प्रतिष्ठा , दान, जोग, तपसा न भाये । ! कंटी, तिलक, विराग, ज्ञान सतगुई सॉ. पाये । श्रवने वेद पुरान जगत में जसी कहाये ॥ १11 दोहा —दुष्ट न छोड़ें दुष्टता, सजन तलै न हेत . कल तने न स्यापता, मोती तबे 'न ’ सेत 7 १ (॥ गुन में औगुन खोजही, हिरों में संशु नीच । ज्यों जूही के खेत में, सूर खोजत कींच ।। २॥ अगर दुष्ट में . जीव हैं)सिर छिं अजस लेईि.। सन तन खात कइ है, पर तन धन दहैिं !fई ॥ सज्जन , ऐसो चाहिये, जैो आकोदुद्ध । औरान ऊपर गन करें , तो जानौ कुल शुद्ध ।i/४ ॥ १ नवतरह की । ३ मैदंर का दूध 1