पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२७१

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२५२
शिवसिंहसरोज

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सी सुरपालबालिका सी बाल लालमालिका सी हरितालिका उपासी है ॥ ३ ॥ एक ही झमाके में छमा के मन मोहैं दृग ऐसे मारमां के ना उमा के ना रमा के हैं । दस हूँ दिस के मनसा के फल देनवारे करन निसा के इमि जाकी और ताके हैं । जाइ के जहाँ के तहाँ मन जल ढॉ गये हरिन हहा के ऐसे कमल कहाँ के हैं । सदन समा के पुखम्मा के उपमा के चारु चंचल इनके नैन ठंाँ राधिका के हैं ॥ ४ ॥ लालच लजीते लोल ललित रसीले लखे लोगन ललकि लै हैं लूटत लौंके हैं । छिन में छलीन चित बैलन को छोमैं छोटें छरकीले सो अवीले छवि छाके हैं ॥ मनसा कहत डेरा डोड़ी के न ढड़े डाका डारत डगर डग डारत में डाके हैं । ऐसे और काके मेनका के अवता के मैनवानन ते वाँके नैन ताके राधिका के हैं ॥ ५ ॥ ५४४मनसाराम कवि । ) A S स्याम दुम स्याम तम स्याम iसा स्याम वन स्याम नभ स्याम स्याम स्याम वन स्याम है । । स्याम मनि स्याम बेनी दी स्याम मानिक सर्ण दीन्ही स्याम खौर करें चली स्पा।म काम है ॥ मंसा राम स्याम चोली भुजन कसे है वाम घरे स्याम चीर धाई भौंर भीर स्याम है । स्याम कुंजाम सराजाम स्याम के के गई स्यामा स्याम जहाँ श्याम जहाँ स्याम स्याम है ॥ १ ॥ ५४५. मीरन कवि हाँ मनमोहन साँ मिल के करती उहाँ केलि घनी तरुखाहीं । सो पुख मीरन कासों कहीं मन मारमसोसन ही मुरझाहीं ॥ पात गये झरि घूम के सृजन गृह परी सिगरे वन माहीं। गाँव के लोग महा निरभै जो पलासन कोऊ बुझाषत नाहीं ॥ १ ॥ सुमन में बास जैसे मु मन में अवै कैसे नाहीं कहे होत नाहीं हाँ