पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२९

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शिवसिंहसरोज

शिवसिंहंसरोज जानत औौति कितावनि को ले निसा के मानेकड़े हैं ते चीन्हे । पालत हो इत आलम को उत नीके रहीम के नाम को लीन्हें ॥ मोजमराह हैं करता करिवे को दिलीपति हैं बर दीन्हे । काख़िल हैं ते रहें बिहूँकहूँ काबिल होत है काबिल कीन्हे 167 २२आनन्य कर्षि (२) गुर्जभाषा वैक्र विशाल प्रज्वालतमंदू निवासानि संघष्ट्र सो घटू घारायनी। नासस्हासासनी सहस फौजें उड़े मात हथ्धीन यारपारायनी ॥ फेरि चैतूल छत बै कारिनी जारनी के वि विस्फकारायन । भद्रकाली कृपा काल भौभंजनी श्रीनमो भी नमो मातु नांरायनी।॥ १॥ २३ . अस्कन्द गिरि बाँदावाते स्कंदविनोद और बनवाइवे की चरचा चली है कहूँ तिदि दिखाइवे की आमि परी तिनको 1.ये तौ व्रजठाकुर न देइ तौ करौगी कहा माँगन है नारसी अँगूठा चारि दिन को | भनि आसकन्द या क बरजोरी नाईिं सुनियो संरखी री औ मुनाइ कहीं फिनको सौंह कुलकानिम की निदान बलि देहों नाईि निसि को, दिवस को, बरी को, एक छिन को 1-१.॥ दोह-सगे देवता पूज़ि में में पूरी मन की आा । अब मैं गोरख पूजिहों, जाकी सबको त्रास ॥ २i २४. अनूपदास कवि ! पासनि साँ बाँधि के अगाध जल बोरि राखेतीरतरछारिन सों मोरि मारि हारे हैं । गिरि ने गिराय दियेडरखे न नेक तब मतद्यारे भूधर से हाथी तरे डारे हैं ॥ फेरे सिर आरा के अंगिनि १ टेढ़ी।२ झाड़।