पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३०

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शिवसिंहसरोज

शिषसिंहसरोज ११ माँ जारे खुनि पुंछे मीड़ेि तंन सों लगाये नांग कारे हैं । पूछे ते बतायो खम्भ नई दिखायी रूप प्रकट अनूपदास वानि ही से प्यारे हैं ॥ १ ॥ २५. ओलीराम कधि डरी डार दीवे उठि राह लीजें जिंस राह ते राम को पाइये जी। दुख सुक्ख ही न्यारे हैं रहियें नित हसिंघे खेलिं५ गाइये जी ॥ पुये मुकुति की गति कहाँ जीव ते मुकति को पाइये जी। ओली में मेरे पर जाना जहाँ जहाँ जीते क्यों नहूिँ.जाइये जी ॥ २६ अभयराम कधि। ए रज रेनुका पै चिंतामनि बारि डाऐं , लोकन को वाओँ सेवा कुंज के बिहार में लतन के पतन मैं कल्पवृक्ष बारि डालेंरमा हूं को वारि डा गोपिन के द्वार है वन पनिहारिन सेंचीं रची वारि डारों वैजेंद्र को बरि डाओँ कालिंदी की धार पै। कई भैरासे राधा ब्लू को जानते हों, देवन को बारि ारों नंद के कुमार थे । २७. अम्बूत कधि. बानी में सारद काठहुतपन , तार के यंत्र में राग कलोलैं। सिद्धि सुभावन ही जिनमें हरि साधुन संगन में निज डोलें ॥ मैन में जीव) उर्यों घेरु में अमृतःज़्याँ दुष में धुत्त पाइये । फूल में गंधमही महें कंचन, पंगून में परमेस्थर बोॉ.. ॥ ८. आनंठने दिल्लीवाले चाए ही ते तन हरि हंसे तिरछे करि नैनन नेह के ब्राउ में। हाय दई प्ठ विसारि दई सुधि कैसी कॐ ठ कहो कितजारों ॥ मीत सुजान नीति कहा यह ऐसी-न-चाहिये प्रीति के माड़ में। मोहनी मूरति देखिचे को तरसात हौ बसि एईि गाँ मैं ।' ॥