पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/२९२

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शिवसिंहसरो २७१ ५८८, मीरीमाधव फधेि बाँसुरी विसद बंसीवट को बलेरो तहाँ निधि6 बयार बन विसद बहति है । बरन विरह मीरीमाधव ये विधियर वेप कि मानें बारि विरघु कहते है ॥ वारिजघदन विरचो है वेना बानी बाँकी विपिन वसन सुनि विरचि रहति है । बारक कहूति विलाँही हाँ ही बार भई बार बार मोसों चलू बावरी कiति है। । १ ॥ ५८६मदनकिशोर कधि औचक ही ग्राइ सुखदैन मन मेरो लैन मैनभरी नैनन की सैनन सरस गो। सुधा के से सीकर सुनाय मृदु वैनन साँ जानिये वसीकर के बैनन वरसि गो ॥ तन को मिलाय करि तनको मिलाय करि तन को मिलाय करि तन तरस गो । आँगन अरसि गो री अंगन परसि गो री मदनकिसोर ऐसे दरसे दरसि गो ॥ १ ॥ आप अब मेरे मनभावन विदेसी पीव मानप्यारे प्रानन ते प्रानन परसि जा चात लैों बासर बितायं विसघास तेरे वारिद सुधा के ट्रैक बुंदन वरसि जा 1 सर्सि सरीर भयो कामरि करीर की सी नीरनिधि नेह नीर सर से सरसि जा । वरसें भई हैं विन देखे तरसे है तन मदनकिसोर नेक दरसे दर िजा ॥ २॥ ५६०मखजात कधिवाजपेयी ज़रूपा प्रसाद उठे घनजात देखि द्वामिनिकलाप देखि देवराजचाप देखि पास आति पांघतो । सुंदौंदपात देखि सूर्य आपकास देखि दिन हू को छूत देखि चैन छू न पाठतो ॥ नभ को वितार देख वायु सुखचार देखि अति अंधकार देखि म में मन लावतो । होतो उहाँ पावस तौं एरी संखी बात सुनौ बीस विसे आालु ही हमारी कन्त आवतो ॥ १० ॥ १ तीन तरह की- शीतलमंदसुगंध। २ कण।३ तरह।