पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३००

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शिवसिंहसरोज २८१ जूरो ऐसी सोभा देते रूरो कैधों मानों हेमगिरि पे वियल ऐंठि वैो है । ॥ १।॥ ६९४. रामनारायण कायस्थ उन्है जो कहे हैं बैन रसना ने कहा भयो रस ना िजाने दोष बामें कहा दीजिये । मति में न आये मति नाम ही प्रतच्छ वाके मेन जाको कहत भरोसो कौन कीजिये ॥ नय नाहि नैनन में प्रेम उपजावै कौन रामनारायन यह साँची के पैतीजिये। झारि झिझकारि प्यारे काहे को कहाये कर मोहन रिसाइ हाइ बैठी हाथ मींजिये ॥ १ ॥ ६१५, ऋषिजू कवि दखाने न ये लगे संवें बरिऔई कलंक लगाइब है । सुनि के क्यदि भाँति सर्प धीर धर्ग मृदु वाँसुरी तान को गाइवो है । इदि बाँस की कौन कहे ऋपिजू भु पतिव्रत पूरो छुड़ाइयो है । सुलु री सजनी वज को बसिवो तरवार की धार को धाइव है ॥ १ ॥ ६१६. रामकृष्ण चौधे कालिंजरवासी ( विनयपचीसी) हुपदभुता को गहि ल्यायो है सभा के बीच नीच याँ दुसासन कुमति मन में भरी 1 देखे मूर्स भीपम करन द्रोन मौन गहि खैचत बसन उर धीर का ना घरी ॥ दीनन के नाथ तुम ऋषि का के नाय नाथ भंवर बढ़ायो है पुकारी जब हे हरी । नंद के दुलारे रामकृष्ण जग तारे सनो पीत पटवारे देर मेरी बार क्यों करी ॥ १ ॥ द१७रघुनाथ पण्डित शिबीन रसूलाबादी ( भाषा-महिम्न ) बसुधा बलंद को बनायो रथ वैठिये को जंता चार बंदत चरन रवि चंद है । घनु नगेन्द्र कीन्हो पीनो चक्र वान कीन्हो १ बियालसर्प । २ मानिए ।३ ज़बरदस्ती ।