पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३१८

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शिवसिंहसरो २६ है हैं करें वीरन की उड़नि अवीरन की -लाली बीरन की वीरन की झलकें ॥ १ ॥ ६६१. राजा रणधीरसिंहसिरमौरसिंगरामऊ (भूषणकौमुदी ) दोह-भाप।”पन ग्रन्थ को, विय जसघन्त नरेस । टीका भूपन हौमुदी, रचि रनधीर सुवेस ॥ १ ॥ सम्बत मुंनि सैसिर्निषिधरन, माघ त्रिदस सित चार । शुभमुहूर्त कवि बांर लहि ;भयोग्रन्थ अवतार ॥ २ ॥ ननमनप्रतिपाली चिंसद, भव-याली आंत्रगाह । ऐसी काली को मुजसआली वर’ का ॥ ३ ॥ मंजुल सुरन्द्र पर सोभित अचिन्त रेख फल मकरन्द जन मोदित करन हैं । प्रमित विराग ज्ञान केसर अव्य देखे शिरद असेस जस पांडु पंसरन हैं ॥ सेर्बित मृदेख मुनि मधु समाधि ही के रनबीर ख्यात हृत इच्छित भरन हैं । इस दृदि मानस प्रकसित सढ़ाई लर्स आमल सरोज बर स्यामा के चरम हैं ॥ ४ ॥ ( काव्यरतकर ) छप एकरदन गुनसदन मदन आरि पश्चबदनपुत । वियनकदन गजवलन दानि महल सिदूरभुत ॥ भाल चन्द गजघन्द मन्द-मति-तमविनासकर । खुद्धिकरन है मरन जाछ बर-बरन भासकर ॥ मद झरत गएड मएडरित अरु झुएड छुएड गुजरित जेहेि । करि ध्याने हृदयं अरविन्दपद सीस धारि रनधीर तेहि ॥ १ it दोहा सम्बत सुमैिं निर्षि बद्ध संसी, अंक-रीति गति वांछ । जेठमुक्त सुभ द्वादसी, जानित ग्रन्थ गुरुवार ॥ १।" ७ १ चरणकमल ।