पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३३२

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शिवसिंहसरोज १३ ६६२ लाल पाट कवि ( शलिहोत्र) दोहा एमिरि राम के जलजपद विधि बंदों कर जोरि । दीर पच्य तुम्हार में अल्य वृद्धि अंति मोर ॥ १ ॥ ६३लक्ष्मण शरणदास श्रीवल्लं, पुरुषोत्तमरूप । सुन्दर नयन विसाल कमलग मृदु बोल अनूप। कोटि मदन वा गशेंग परतें मृनत अति संरस सरूप ॥ देवीजी वड़धारन प्रगटीदांस सरन लछिमेनटुत धूप ॥ १। गे ६६४ ताल सहव, महराज त्रिलोकनाथसिंहद्विजदेवमंहगंज मानसिंहें बहादुर के भतीजे और जाँनशीनें, भुवनेश कधि (भुवनेशभूषणग्रन्थ ) मुंचनेस गुलाब से गान में नित नैनन से जल सॉ झरि हैं । चके चित्त चकोरन टू उरीि के बिरहानतब्बाल संघ हरि हैं। घनस्याम प्रवास चले तो चलो सिख यों हम लै ।में धरि हैं। करि है छल जो वे मनोज अहो तो कहो हम कौन दवा करि हैं ॥ १ ॥ समता भ्रमता में परी ही रहें अवलोकि छटां उन नैनन की । सेरसात ससी दुति सुन्दरता लहि हैं छवि लाजि सरोजन कीं ॥ भुवने सर्वे विधि ये तो सुरंग सुरंग गहै सरि क्ाँ इनकी। इन पानिप को लहि मीनऊ के गन ओस करेंनिज जीवैन की ji २ ॥ आये नदि कंत होन चाहै रंजनी को अंत सोति संयानी चंद सुन्दह पिठानि के j उसर्सि उसांडे ऑड मेदेिं सोचि लोचन ते ती तन में छाये दुख दीर मसानि कैं- संकुचि सहेलिन सों सोईि युवनेस इनिं ढाँपि लीन्हो अंग अंग सारी सूत्र तांनिप्र १ परदेश ।२ प्ग ।३ जल और जिंदगी । डोंडकर ५ ।