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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३३४

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शिवसिंहसरोज ३ १ है ॥ ३ ॥ कामिनी सदन गजगामिनी विलोकि आई द- मिनी न पाई गो गुराई गेरे गात सी"। विधु मानसर ते सरद ससि कर तर सेस के मुकुर से अधिक आबात सी ॥ श्रीपति सुजान परखत इरखत मन नैन को सितासित सरोज नष बत सी । जाही हारि जात सी जुही विदारि जात सी विकास खारिजात सी सुवास पारिजात सी ॥ ४ ॥ रारि जात आलि कीने वारिन की आरि जात लागि जात सहज वयारि’जा तन की । श्रीपति सुजान जाहीजूथिा विदारि जात महिमा विगारि जात पारिजातवन की ॥ झरि जात मालती गुलाव मद मारि जात सौरभ उतरि जात केतकी सघन की। वारि जात तगर अगरधूप हारि जात राह परिजात पारिजात के सुमन की ॥ ५ ॥ वारि जात पारिजात पारिजात हारि जात मालती विदारि जात सर्बािन की झरी सी । माखन सी मैन सी मुरार मखमल सम कोमल सरस तरु फूलन की छरी सी . गहगही गई गुराई गोरी गोरे गात श्रीपति बिलौर-सीसी ईगुर में भरी सी । विज्जु थिरधरी सी कनकरेख करी सी प्रबाल दुक्ति हरी सी ललित लाललरी सी।। ६ ॥ गोरी महा भोरी तेरे गत की गुरई देखि दिन दिन दामिनी की छातत होत धंधा सी । श्रीपति कमल की कसानी मखमल की बद खसानी लाल की ललाई ला मुvा सी ॥ मोप निरंत समकर को हरत जोम रोमरोम डरत छपीथेन की डा ‘सी। सुखमा को ऐनमई हीतलको चैनमंई पी-मन को मैनई नैनन को सुधासी।। एहो ब्रजराज एक कौतुक त्रिलोक आज भानु के उर्दू में बृषभानु के महल पर 1 विषम जलघर विन पावस गन मुनि चला च चारु घनसार थल पर ॥ श्रीति सुजान मन मोइत मुनीसन के १ बिजली ।२-जाही जूही के फूल1 ३ धकधक। :।