पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३४६

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शिनसिंह रोज अनंगाद लजाय है । मोहनी सी बातें कहि कादि गति गहि बाँह हंस (स हरप हजार उपज ।यो है ॥ षि कधि कहै मो मै कनो ना परत कछू बेरह दुसह दुख ने नेक न भजायो हैं । ज लगि । हिये में मैं लगाऊँ री रसिकराज तौ लगि बजस्मारे गजर बजायो है ॥ १ ॥ ७१४. शिव लाद सितारेहिन्द बनारसी (भूगोलहस्तम लक,इतिहासतिमिरनाशक ) केते भये जादव सगरसुत केते भये जात हूं न जाने क्यों तयाँ परभात की । बलि वेलु सुंशीप मानधाता पहलाद कहिये कहाँ लॉ कथा रावन जजात की ॥ वेइ ना वचन पाये काल कौतुकी के झथ भाँति भाँति सेना रची बने दुखघात की । चार चार दिना को चघाघ सब कोऊ क र्गत लुटि है जैसे पूतरी बरात की। १॥ दोहा-इत गुलाम इत अलतमस, इतदि महादसा । इd। सिकन्दर रखेबहुतेरे नरनाह जे न समाये ाहुलआटे-कटक के बीच । तीन हाथ धरती तरे, मीड किये अत्र नीच 7 २ ॥ ७१५. शिवनथ कवि ररंजन) नाव नट नटी लो (पये घटघटी रन ऐसी टी , सिघनाथ सिरतेस की । कौत सिर आड़ी होति काहू सर्षों न आड़ी होति काहू न आड़ीईोति चाँड़ी होति देस की ॥ झम फिलिम सड भाबें दीप:दीपन के लचे छन महें मद सब्बर नरेस की । आरिन पै करि को कटत झिलिम टोप सुजस को कोस देर्ति थोप जगतेस की ॥ १ ॥आय छिकाइ दे गुलाब कुंद केारा में पक चमेली चोप चाँदनी निवारी में 1 जुही सोनजुही जाही १ नक्ष्न । २ एक नदी ।