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पृष्ठ:शिवसिंह सरोज.djvu/३७५

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३५८
शिवसिंहसरोज

३५८ शिवसिंहसरोज सार साला से । मनिदधिमाला मनि भूपन बालित वाला खासे परजंक बासे सुमनन माला से ॥ विजन उसीर नीर मलय समये है परस समीर है सरस सीतकाला से । जिन हेत विरचे विश्वि हैं मसाला ऐसे व्यथित न होत ते निदाघ-जात-ज्वाला से।१॥ ७६०सुवि कवि कश्वनबरन बाल हरन मुनीन मन चरनसरोज राजे सब ख स।जी है । भनत सुकधि अंग भंगन अनंग राजे नैन चारु चंचल न पावे पार वाजी है ॥ बैठी चित्रसाला में विचित्र चित्र देखत है केहरि रंग की करति छवि माजी है । कोकिल कपोत कीर पेखि पुख पायो बाल निरख जुराफा भई अति इत राजी है ॥ १ ॥ ७१. श्यामदास पद श्री गोपालजू की आरती करतु हैं । घएटा ताल पखावज वाजे श्वमुखी वाती वस्तु हैं । सिव विरश्वि नारद इन्द्रादि सब मिलिगावत वीन व जतु हैं! स्याम प्रभु को देखत सब तन मन धन वारिवारि डास्तु हैं।१॥ ७६२, श्रीभट्ट पद स्याना स्याम सेज ठि बैठे अरस परस दोउ करत सिंगार । इन पहिरी बाकी मोतिन-माला उन पहिरो बाको नौसरहार ॥ पेंच सँवारे बृपनुनंदिनी अलक देवारत नंदकुमार । सि मुसकाय करत दोउ वार्ता बर्दन निहारत वारस्वार ॥ । लपटि पाग मरंगजी माला कहि न जात सभा सुखसार । श्रीभट के प्रभु जुगल की दूनी मेरे अंगन करत विहार ॥ १ ॥ ' ७६. श्याममनोहर चली दधि वेंचन किसोरी कुंवरि है गजैगामिनी । ५ मसली हुई।२ हाथी की-सी मस्त चाल से चलनेवाली।